राज्य द्वारा मजदूरों के दमन की निंदा करें!
इंसाफ के लिये संघर्ष जारी रहेगा!
ग्राज़ियानों ट्रांस्मिसियोनी एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है जो मोटर गाड़ियों के लिये गियर बनाती है। सारी दुनिया में इसके 35 प्लांट हैं। इस भूतपूर्व इतालवी बहुराष्ट्रीय कंपनी को अब एक अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनी ने खरीद लिया है। इस कंपनी के मजदूरों द्वारा बनाये गये गिय
राज्य द्वारा मजदूरों के दमन की निंदा करें!
इंसाफ के लिये संघर्ष जारी रहेगा!
ग्राज़ियानों ट्रांस्मिसियोनी एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है जो मोटर गाड़ियों के लिये गियर बनाती है। सारी दुनिया में इसके 35 प्लांट हैं। इस भूतपूर्व इतालवी बहुराष्ट्रीय कंपनी को अब एक अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनी ने खरीद लिया है। इस कंपनी के मजदूरों द्वारा बनाये गये गियर और ट्रांस्मिशन बेल्ट दुनिया के कई महामार्गों पर चलती मोटर गाड़ियों व भारी वाहनों के हिस्से हैं। लगभग चार साल पहले इस कंपनी का नाम समाचार पत्रों में आया जब हमारे देश की मीडिया ने यह रिपोर्ट किया कि इस कंपनी के ग्रेटर नोएडा प्लांट के सी.ई.ओ. की, मजदूरों के आन्दोलन के दौरान, मौत हो गई थी।
22 सितंबर, 2008 को इस फैक्टरी के सी.ई.ओ., ललित किशोर चौधरी की फैक्टरी परिसर के अन्दर मौत हो गई थी। जांच किये बिना ही इजारेदार पूंजीपतियों की मीडिया ने तुरंत फैक्टरी के आंदोलित मजदूरों पर सी.ई.ओ. की ''हत्या करने'' का आरोप लगाया। प्रबंधन और पुलिस ने मिलकर कुछ मजदूरों और उनके नेताओं पर हत्या का आरोप लगाया, जब कि ये मजदूर और उनके नेता कई महीनों की तालाबंदी के चलते, फैक्टरी गेट के बाहर लगभग 300 मीटर की दूरी पर धरने पर बैठे थे। इन आरोपों के आधार पर, प्रबंधन ने, पुलिस और प्रशासन कीे सांठगांठ में, मजदूरों और उनके नेताओं को उत्पीड़ित किया।
परन्तु मजदूरों ने इंसाफ के लिये अपना संघर्ष नहीं रोका है। चार वर्ष पहले की घटनाओं की वजह से फैक्टरी गेट पर चल रहे मजदूरों के विरोध संघर्ष को पीछे हटना पड़ा था, क्योंकि मालिकों को सभी मजदूरों को निकालने, झूठे इल्जामों पर कई मजदूरों को जेल भेजने, मजदूरों के संगठन को कुचलने तथा मजदूरों की एकता को तोड़ने का मौका मिला था। इस सब तरफा हमले को झेलते हुये, मजदूरों ने बड़ी बहादुरी से अपनी एकता बनाये रखी। दो मजदूरों को छोड़कर बाकी सभी जेल से रिहा हो चुके हैं। सभी मजदूरों को बोनस बतौर आंशिक वेतन मिला है। मजदूर अपनी मांगों पर डटे रहे हैं, कि सभी निकाले गये मजदूरों को वापस लिया जाये, उन्हें पीछे का पूरा वेतन दिया जाये और उन पर लगाये गये सभी आरोपों को वापस लिया जाये। प्रबंधन ने कुछ मजदूरों को निकालने के बदले में कुछ आंशिक समझौता करके मजदूरों को बांटने की कोशिश की है, परंतु मजदूर इस जाल में नहीं फंसे हैं। मजदूरों के नेता कामरेड विरेन्द्र सिंह सिरोही ने मजदूरों को लामबंध किया और उन्होंने यह मांग रखी कि प्रबंधक मजदूरों को निकाले जाने के दिन से सेवानिवृति की उम्र तक पूरा वेतन दे, अगर उन्हें वापस नहीं लिया जाता।
इन परिस्थितियों में, प्रबंधन एक गंदी चाल चली। मई 2012 को, उस घटना के 4 वर्ष बाद, प्रबंधकों ने सरकारी वकीलों और अदालत को पैसे खिलाकर, सी.ई.ओ. की मौत के लिये कामरेड सिरोही पर दंड संहिता के दफा 319 के तहत इल्ज़ाम लगवाया – जब कि यह स्थापित हो चुका था कि जिस समय, सी.ई.ओ. की मौत हुई थी, उस समय कामरेड सिरोही प्लांट के अन्दर या आस-पास भी नहीं थे। इसके अलावा, मुकदमे के दौरान, सी.ई.ओ. की मौत के एक प्रमुख गवाह, उसकी गाड़ी के ड्राइवर ने अदालत में बयान दिया था कि, सी.ई.ओ. की मौत प्लांट के अन्दर, उसके दूसरी मंजिल से पहली मंजिल तक कूदने की वजह से हुई थी – यानि कि चौधरी की मौत की वजह हत्या नहीं थी।
ग्राज़ियानो के मजदूरों पर जो गुजर रहा है, वह देश भर में स्थापित लगभग सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मजदूरों के साथ हो रहा है – एन.सी.आर., बेंगलूरू, चेन्नई, इत्यादि में। ये पूंजीपति किसी भी श्रम कानून का पालन नहीं करते। केन्द्र और राज्यों में सरकारें खुलेआम अपने ही श्रम कानूनों का उल्लंघन करती हैं। पुलिस, प्रशासन, अदालत, सब प्रबंधकों की सांठगांठ में काम करते हैं। ट्रेड यूनियन बनाने के अधिकार पर हमला किया जाता है।
ग्राज़ियानों में 300 मजदूरों ने दिसंबर 2007 में खुद को यूनियन में संगठित किया और दिसंबर 2007 में अपनी मांगें उठायीं। जब प्रबंधकों ने प्रवेश कार्ड ठीक से न पंच करने का बहाना देकर मजदूरों के वेतन में कटौती करने की धमकी दी, तब मजदूर वेतन वृध्दि, नियमित किये जाने, कैन्टीन में सही भोजन इत्यादि जैसी मांगों को लेकर एकजुट हो गये। अपनी समस्याओं पर जोर देने के लिये मजदूरों ने नोएडा के श्रम कार्यालय (लेबर आफिस) के सामने प्रदर्शन किया। लंबे संघर्ष के बाद, 24 जनवरी, 2008 को प्रबंधन को नोएडा के उप श्रम आयुक्त के सामने वेतन वृध्दि पर समझौते पर हस्ताक्षर करना पड़ा। लेकिन उस समझौते को कभी लागू नहीं किया गया, जिससे मजदूर बहुत नाराज़ हो गये।
जनवरी 2008 से प्रबंधन ने ठेके पर मजदूरों को रखने और उन्हें प्रशिक्षण देने की नीति शुरू की। मई 2008 तक उनकी योजना स्पष्ट हो गई, कि नये प्रशिक्षित मजदूरों को तैयार किया जाये और सभी तत्कालीन मजदूरों को निकाल कर उनका संगठन तोड़ दिया जाये। इस अवधि में 400 से ज्यादा मजदूरों को ठेके पर रखा गया।
फिर मजदूरों पर नियमित रूप से हमला शुरू हुआ। मजदूरों को भड़काने के लिये प्रबंधन ने 5 प्रशिक्षु मजदूरों को मनगढंत आरोपों के आधार पर मई 2008 में निलंबित कर दिया। मजदूरों ने निलंबित प्रशिक्षु मजदूरों को वापस लेने की मांग उठाई। प्रबंधन ने 27 मजदूरों को निकाल दिया। मजदूरों ने नोएडा लेबर ऑफिस के सामने प्रदर्शन किया। 21 और मजदूरों को निकाल दिया गया तथा 30-30 मजदूरों की दो सूचियां बनायी गयी, जिन पर तालाबंदी की घोषणा की गई। 21 मई, 2008 को प्रबंधन ने किराये के गुंडों द्वारा मजदूरों पर हमला आयोजित किया।
जब मजदूरों ने प्लांट के अन्दर असहनीय गर्मी को कम करने के लिये एक्सहॉस्ट फैनों को ठीक से लगाने की मांग की, तो प्रबंधन ने मजदूरों पर दंगा करने का आरोप लगाया। 30-31 मई, 2008 को प्रत्येक मज़दूर को एक्सहॉस्ट फैन की सिक्युरिटी बतौर एक लाख रुपये का बांड भरना पड़ा।
30 जून को प्रबंधन ने डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट और श्रम आयुक्त की उपस्थिति में, मजदूरों के साथ एक समझौता किया। समझौते के अनुसार, प्रबंधन तीन बैच में 65 मजदूरों को वापस लेने को मंजूर हो गया।
1 जुलाई, 2008 को मजदूरों ने कामरेड सिरोही के नेतृत्व में, दिल्ली में जंतर-मंतर पर एक रैली आयोजित की। 2 जून, 2008 को जब वे काम पर आये तो गेट पर 192मजदूरों की सूची लगी हुई थी, जिन पर तालाबंदी की घोषणा की गई थी। प्रबंधन फिर समझौते से पीछे हट गया।
निलंबित और बरखास्त मजदूरों ने तब फैक्टरी गेट से 300 मीटर की दूरी पर अपना धरना जारी रखा। प्रबंधन बाकी मजदूरों और नये ठेके मजदूरों के बल पर फैक्टरी में काम चलाता रहा। ठेके मजदूरों को फैक्टरी परिसर के अन्दर ही खाना-सोना रहना पड़ता था। फैक्टरी के अन्दर व बाहर मजदूरों को डराने-धमकाने के लिये गुंडे भी तैनात किये गये।
22 सितंबर, 2008 की घटना से पहले, प्रबंधन और मजदूरों के बीच दो मीटिंगें हुयीं, जिनमें प्रबंधन ने मजदूरों को वापस लेने से इंकार कर दिया। 16 सितंबर को इस मुद्दे को हल करने के लिये, गौतम बुध्द नगर के ए.एल.सी., डी.एल.सी. और ए.डी.एम. द्वारा एक मीटिंग बुलाई गई। प्रबंधन ने कहा कि वे हरेक बरखास्त मजदूर से माफी पत्र लेंगे और फिर हर मामले पर अलग-अलग फैसला करेंगे।
22 सितंबर, 2008 को जब बाहर धरना चल रहा था, तब फैक्टरी के अन्दर ठेके मजदूरों की गंदी रहने व काम करने की हालतों को लेकर, प्रबंधन और ठेके मजदूरों के बीच झगड़ा हो गया। ठेके मजदूर फैक्टरी परिसर में कैदी जैसे रहते-रहते तंग आ गये थे। इस झगड़े के दौरान, सी.ई.ओ. चौधरी दूसरी मंजिल से नीचे कूद पड़े और उन्हें गहरी चोट पहुंची। बाहर धरने पर बैठे मजदूरों को इसकी कोई जानकारी न थी।
जबकि फैक्टरी के अन्दर यह हादसा सुबह 11:30 बजे हुआ, तो शाम को लगभग 4 बजे पुलिस ने आकर बाहर धरने पर बैठे मजदूरों को गिरफ्तार कर लिया। 200 मजदूरों को गिरफ्तार किया गया। 76 मजदूरों को दफा 302 और 307 के तहत पकड़ा गया। 74 मजदूरों को दफा 107, 116 और 151 के तहत पकड़ा गया। कई मजदूरों को जमानत पर रिहाई मिलने से पूर्व, काफी लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा। दो मजदूर, रजेन्द्र और महेन्द्र सिंह, जो उस दिन धरने को अगुवाई दे रहे थे, अभी भी जेल में हैं। अदालत की कार्यवाहियों के दौरान, प्रबंधन और पुलिस ने साज़िश करके, मजदूरों को झूठे आरोपों पर फंसाने की कोशिश की। 24 अक्टूबर, 2008 को प्रबंधन ने सभी नियमित मजदूरों को निकाल दिया। बाद में सभी ठेके मजदूरों को भी निकाल दिया गया।
4 साल बाद, ग्राज़ियानों के मजदूर इंसाफ के लिये अपने संघर्ष पर डटे हुये हैं। यह अहम संघर्ष संपूर्ण मजदूर वर्ग के पूरे समर्थन का पात्र है।