दिल्ली जल बोर्ड में निजीकरण पर कामरेड विरेन्द्र गौड़ से साक्षात्कार

म.ए.ल. : आप दिल्ली जल बोर्ड के निजीकरण का विरोध क्यों कर रहे हैं?

म.ए.ल. : आप दिल्ली जल बोर्ड के निजीकरण का विरोध क्यों कर रहे हैं?

का. विरेन्द्र गौड़ : निजीकरण से कर्मचारियों की रोजी-रोटी की असुरक्षा होगी। ठेकाकरण बढ़ेगा। 10 कर्मचारियों का काम 2 कर्मचारी से करायेंगे।

हम, लोगों के धन से बनी इस संस्था को मुनाफा कमाने के लिए देशी-विदेशी कंपनियों के हाथों देने के खिलाफ़ हैं। लोगों के लिए समुचित पानी उपलब्ध कराने के सरकार के बुनियादी दायित्व को निजी हाथों के द्वारा पूरा किये जाने के हम खिलाफ़ हैं।

म.ए.ल. : कौन-कौन से प्लांट निजी हाथों में सौंपे जा चुके हैं?

का. विरेन्द्र गौड़ : सोनिया विहार, जल शोधन प्लांट को सरकार ने 188 करोड़ रुपये सालाना पर एक निजी कंपनी डेग्रामोंट को 10 वर्ष के लिए दिया है।

भागीरथी जल शोधन यंत्र के रखरखाव और इसे चलाने की जिम्मेदारी लार्सन एंड टुब्रो को दी गई है। निजी हाथों में जाने से पहले सालाना 34.85 करोड़ रुपये में यह प्लांट चलता था। इसमें बिजली, कच्चे पानी की खरीद, 315 कर्मचारियों की तनख्वाह भी शामिल है। जबकि लार्सन एंड टुब्रो को, जिसके पास इस क्षेत्र का कोई अनुभव नहीं है, इस प्लांट को चलाने के लिए सरकार 271 करोड़ रुपये सालाना दे रही है। इसका सालाना ब्याज ही 27 करोड़ रुपये है। यह अभी केवल 25 साल पुराना प्लांट है। इस प्लांट में दिल्ली जल बोर्ड के 60 कर्मचारी भी हैं, जिनकी तनख्वाह सरकार दे रही है।

बूस्टर पंपिंग स्टेशन को चलाने, बड़ी-बड़ी लाईन डालने, इमरजेंसी वाटर सप्लाई का काम आदि भी निजी कंपनियां कर रही हैं।

यह कह रहे हैं कि वंसत विहार और मालविय नगर क्षेत्र में 24 घंटे पानी दिया जायेगा। सरकारी कर्मचारियों के निवास क्षेत्र तथा भारी आबादी के क्षेत्र इनकी परियोजना से बाहर हैं। जबकि पानी सीमित है। कहा जा रहा है कि कुछ क्षेत्रों की 24 घंटे पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए अन्य क्षेत्र के लोगों के पानी की कटौती करनी होगी।

ओखला तथा रिठाला स्थित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के आधे-आधे हिस्से को डेग्रामोंट को दिया गया है।

म.ए.ल. : विश्व बैंक को दिल्ली जल बोर्ड में क्या रुचि है?

का. विरेन्द्र गौड़ : विश्व बैंक, अमरीकी साम्राज्यवादियों और पूंजीवादी व्यवस्था के हितों की पूर्ति कर रहा है। उदारीकरण और निजीकरण के द्वारा भूमंडलीकरण की नीति के तहत ही पूरे विश्व में जलनीति के तथाकथित सुधार का कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसी कार्यक्रम को हमारे देश की सरकार, देशी विदेशी पूंजीपतियों के हितों के लिए लागू कर रही है।

म.ए.ल. : बिजली के निजीकरण के बाद, पानी का निजीकरण लोगों पर एक बहुत बड़ा हमला है। इस पर आपकी राय क्या है?

का. विरेन्द्र गौड़ : दिल्ली जल बोर्ड को बनाने तथा इसे नगर निगम से अलग करने का सरकार का निश्चित उद्देश्य था। यह उसी उद्देश्य के समान है, जैसे दिल्ली विद्युत बोर्ड के साथ हुआ। 24 फरवरी, 1997 को दिल्ली बिजली आपूर्ति उपक्रम (डी.ई.एस.यू.) को दिल्ली विद्युत बोर्ड में बदल दिया गया। 1 जुलाई, 2002 में इसे पांच अलग-अलग कंपनियों में बदल दिया गया। बिजली उत्पादन की 2 कंपनियों को सरकार ने अपने पास रखी बाकी बिजली वितरण की तीन कंपनियों को पूंजीपतियों को सौंपा दिया। इसी क्रम में आगे चलकर, दिल्ली जल आपूर्ति एवं मल निपटान उपक्रम को 6 अप्रैल, 1998 में दिल्ली नगर निगम से निकालकर दिल्ली जल बोर्ड का रूप दे दिया गया।

म.ए.ल. : पूरी दिल्ली में जल बोर्ड की कितनी संपत्ति है?

का. विरेन्द्र गौड़ : विश्व बैंक के प्राइस वाटर हाउस ने 8साल पहले दिल्ली जल बोर्ड की संपत्तियों का सर्वे किया था। उसने लाजपत नगर स्थित दिल्ली जल सदन की जमीन की कीमत उस वक्त 65 करोड़ रुपये लगाया था। असली कीमत खरबों में है।

म.ए.ल. : क्या जल बोर्ड में नये कर्मचारी भर्ती किये जा रहे हैं?

का. विरेन्द्र गौड़ : आज दिल्ली की जनसंख्या 90 की तुलना में दुगनी गति से बढ़ी है, जबकि कर्मचारियों की संख्या उतनी ही गति से घटायी गई है। उपभोक्ता बढ़े हैं। कालोनियां बढ़ी हैं। ऐसा भी नहीं है कि मशीनों से काम हो रहा है ताकि यह मान लें कि जल बोर्ड में मानव श्रम की ज़रूरत नहीं है।

म.ए.ल. : सरकार द्वारा कर्मचारियों पर अकर्मण्यता के आरोप कहां तक सही है?

का. विरेन्द्र गौड़ : मुख्य बात यह है कि सरकार जिन सेवाओं के प्रति अपने उत्तरदायित्व को खत्म करना चाहती है, उसे ऐसे खास अधिकारियों के हाथों में सौंप देती है, जो सरकार के रणनैतिक लक्ष्य को पूरा करने में माहिर हैं। संस्थान को घाटे में डालकर, सेवा का स्तर इतना घटिया कर दिया जाता है, ताकि कर्मचारियों पर अकर्मण्यता का आरोप लगाया जा सके। लोगों का सामना कर्मचारियों से होता है। लोगों का बेहतर सेवा मांगना जायज़ है। कर्मचारियों पर अकर्मण्यता का आरोप लगाकर सरकार के लिये संस्थान के किसी एक हिस्से या पूरे को निजी हाथों में देने को जायज़ ठहराना आसान हो जाता है। राजस्व विभाग इसका ज्वलंत उदाहरण है।

म.ए.ल. : निजीकरण की इस प्रक्रिया में क्या सरकार सिर्फ प्लांटों का ही निजीकरण कर रही या सप्लाई का भी?

का. विरेन्द्र गौड़ : पानी का उत्पादन, वितरण तथा सिवरेज – तीनों निजीकृत कंपनियों को दिये गये हैं।

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