राडिया टेप्स से फिर यह सच्चाई सामने आती है कि हमारे देश में लोकतंत्र की व्यवस्था को चलाने वाले और उससे लाभ उठाने वाले सबसे बड़े इजारेदार पूंजीपति ही हैं। इजारेदार पूंजीपति और उनकी पार्टियां राजनीतिक प्रक्रिया के हर पहलू – उम्मीदवारों का चयन, चुनाव अभियान, सरकार गठन, मंत्रियों की नियुक्ति, नीतिगत और संवैधानिक फैसले – पर अपनी हुकूमत चला सकती हैं। पूंजीपति वर्ग राज्य का इस्तेमाल करके, अधिक
राडिया टेप्स से फिर यह सच्चाई सामने आती है कि हमारे देश में लोकतंत्र की व्यवस्था को चलाने वाले और उससे लाभ उठाने वाले सबसे बड़े इजारेदार पूंजीपति ही हैं। इजारेदार पूंजीपति और उनकी पार्टियां राजनीतिक प्रक्रिया के हर पहलू – उम्मीदवारों का चयन, चुनाव अभियान, सरकार गठन, मंत्रियों की नियुक्ति, नीतिगत और संवैधानिक फैसले – पर अपनी हुकूमत चला सकती हैं। पूंजीपति वर्ग राज्य का इस्तेमाल करके, अधिक मुनाफे बनाने के लिये भूमि और कुदरती संसाधनों की अधिक से अधिक लूट और श्रम के अधिक से अधिक शोषण को सुनिश्चित करता है।
पूंजीपति, मंत्री, ऊंचे अफसर, भरोसेमंद संस्थागत पार्टियों के नेता, वरिष्ठ न्यायाधीश – यह सभी शासक पूंजीपति वर्ग के हिस्से हैं। यह वर्ग शोषित जनमुदाय को दबाये रखने और समाज की लूट को पूंजी के मालिकों के बीच बांटने के लिये राज्य सत्ता का प्रयोग करता है। पूंजीपति वर्ग के लिये यह बहुत महत्वपूर्ण हैं कि वर्तमान लोकतंत्र के असली चरित्र को छिपाया जाये और उसे ”जनता का शासन, जनता द्वारा शासन और जनता के लिये शासन” के रूप में पेश किया जाये। मजदूरों, किसानों और आदिवासी समुदायों की भूमि और श्रम के बेरहम शोषण और लूट को जारी रखने के लिये इस भ्रम को बरकरार रखना बहुत जरूरी है।
राडिया टेप्स के पर्दाफाश के बाद रतन टाटा (जिसका बुरी तरह पर्दाफाश हुआ था) ने खुद को बचाने और अपनी सफाई साबित करने की हर तरह की कोशिश की। उसने अपने बचाव में तथा उसकी भूमिका की आलोचना करने वाले संसद के विपक्ष के सदस्यों के खिलाफ़ सार्वजनिक बयान दिये। इस प्रकार की खुलेआम बयानबाजी से सभी घटकों की पोल खुलनेवाली थी, इसलिये वरिष्ठ कांग्रेस पार्टी के नेता, प्रणब मुखर्जी ने हस्तक्षेप किया। उन्होंने पूंजीपतियों को पर्दे के पीछे छिपे रहने, जैसा कि वे आम तौर पर रहते हैं, और सार्वजनिक वाद-विवाद में भाग न लेने की नसीहत दी।
प्रणब मुखर्जी ने अपने वर्ग को याद दिलाया कि सार्वजनिक वाद-विवाद संसद में सांसदों का काम है। वित्ता पूंजी के मालिकों का काम है जनता की नजरों से छिपे रहना और पीछे से चाबी चलाना। अगर उनका चेहरा सामने आ गया तो यह पूंजीवादी लोकतंत्र के लिये खतरनाक हो सकता है।
इस चेतावनी के बाद कांग्रेस पार्टी और विपक्ष की पार्टियों ने मीडिया में प्रमुख स्थान ले लिया है। कई मंत्रियों और अफसरों पर सीबीआई ने छापे मारे हैं, जिनका खूब प्रचार किया गया है। इस व्यवस्था के असली चालक फिर पर्दे के पीछे जनता की नजरों से छिप गये हैं।
लोगों को यह झूठ बताया जाता है कि ”सत्ताधारी” पार्टी और ”विपक्ष” की पार्टी लोगों के अलग-अलग तबकों के प्रतिनिधि हैं, कि संसद में और टीवी पर वाद-विवाद के जरिये लोकतंत्र को बरकरार रखा जाता है। हमने अभी हाल में देखा है कि कैसे भाजपा जेपीसी जांच की मांग कर रही है और कांग्रेस पार्टी इससे इंकार कर रही है और दोनों एक दूसरे पर इल्जाम लगा रहे हैं। चर्चा इस बात पर केन्द्रित नहीं है कि पूंजीवादी लोकतंत्र के साथ क्या समस्या है, बल्कि इस बात पर हट चुकी है कि कांग्रेस पार्टी ज्यादा भ्रष्ट है या भाजपा।
बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा नियंत्रित मीडिया इस झूठ को फैला रही है कि यह टेलीकॉम घोटाला लोकतंत्र की व्यवस्था में एक और ”अपवाद” है। यह झूठ फैलाया जा रहा है कि टेप्स से सामने आने वाले गुप्त समझौते किसी भ्रष्ट नेता की समस्या है, जिसे जांच आयोग बैठाकर और इस या उस नेता को हटाकर सुधारा जा सकता है। श्री राजा को अपना पद छोड़ना पड़ा। अखबारों और टीवी में हिन्दोस्तानी लोकतंत्र के ”कूड़ेदान की सफाई” करने वाले सुधारों पर लगातार चर्चा होती रहती है। परन्तु वर्तमान लोकतंत्र के वर्ग चरित्र के बारे में तथा उसे हल करने के जरूरी कदम के बारे में कोई चर्चा नहीं होती।
पूंजीपति वर्ग और उसके वक्ता चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, वे अब पहले की तरह लोगों को उल्लू नहीं बना सकते। वे अब इस बात को नहीं छिपा सकते कि वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था इजारेदार कंपनियों की अगुवाई में पूंजीपति वर्ग की हुक्मशाही के सिवाय और कुछ नहीं है। वे मजदूरों और किसानों को यह समझने से रोक नहीं सकते कि केन्द्रीय सरकार और संपूर्ण राज्य तंत्र अति अमीर विश्वस्तरीय बड़ी पूंजीवादी कंपनियों द्वारा शोषण और लूट को और बढ़ाने के लिये काम करते हैं।