अवैध मानव व्यापार :

पूंजीवादी व्यवस्था में शोषण का एक अमानवीय स्वरूप

हाल के दिनों में, मीडिया में कई चौंकाने वाली कहानियां प्रकाशित की गई हैं, कि किस तरह जवान महिलाओं और लड़कियों को कुछ एजेंसियों द्वारा देश के अलग-अलग इलाकों से दिल्ली व अन्य शहरों में लाया जाता है, जहां उन्हें वेश्यावृति या घरेलू दासता में जबरदस्ती धकेला जाता है और बर्बरतापूर्ण शोषण का सामना करना पड़ता है।

पूंजीवादी व्यवस्था में शोषण का एक अमानवीय स्वरूप

हाल के दिनों में, मीडिया में कई चौंकाने वाली कहानियां प्रकाशित की गई हैं, कि किस तरह जवान महिलाओं और लड़कियों को कुछ एजेंसियों द्वारा देश के अलग-अलग इलाकों से दिल्ली व अन्य शहरों में लाया जाता है, जहां उन्हें वेश्यावृति या घरेलू दासता में जबरदस्ती धकेला जाता है और बर्बरतापूर्ण शोषण का सामना करना पड़ता है।

अवैध मानव व्यापार, खास तौर पर महिलाओं और बच्चों का व्यापार हिन्दोस्तान में काफी प्रचलित है। अवैध मानव व्यापार इंसानों – खास तौर पर महिलाओं और बच्चों – को बेचने-खरीदने और फिर निजी मुनाफे के लिये उनका शोषण करने का सुनियोजित अपराधी करोबार है। हमारे देश में इस प्रकार के कई सुनियोजित धंधे चलाये जाते हैं, जो राज्य के अधिकारियों की मिलीभगत के साथ चलाये जाते हैं। जब देश की राजधानी और उसके आस-पड़ोस में ऐसा होता है तो दूसरे शहरों और नगरों में क्या होता होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसी घटनाओं की मीडिया में ज्यादा रिपोर्टिंग नहीं होती। न ही यह कोई नयी या हाल की गतिविधि है; परन्तु देश के विभिन्न इलाकों में जनसमुदाय की बढ़ती गरीबी और कंगाली की वजह से यह काफी फैल गयी है और इसकी बर्बरता बहुत बढ़ गयी है।

देश के अलग-अलग इलाकों से महिलाओं और बच्चों को खरीदा जाता है और फिर देश के अन्दर व विदेशों में उन्हें सप्लाई किया जाता है। उन्हें नौकरी, विवाह और बेहतर जिंदगी के सपनों से लुभाया जाता है। यह मानव व्यापार तरह-तरह के श्रम के लिये किया जाता है, जैसे कि बंधुआ मजदूरी, कृषि मजदूरी, घरेलू काम, निर्माण उद्योग, कालीन बनाने का उद्योग, वस्त्र उद्योग, निर्यात-उन्मुख उद्योगों, आदि में मजदूरी। भीख मंगवाने के लिये, शारीरिक तंत्रों के अवैध व्यापार के लिये, नशीले पदार्थों की बिक्री, तस्करी आदि के लिये भी मानव व्यापार द्वारा सप्लाई की जाती है। खास तौर पर महिलाओं और लड़कियों को यौन व्यापार, वेश्यावृति, सामाजिक व धार्मिक तौर पर मान्यता प्राप्त वेश्यावृति (जैसे कि मंदिरों में देवदासी प्रथा), यौन पर्यटन व अश्लील प्रचार के लिये बेचा-खरीदा जाता है। सरकस, नृत्य वृंदों, ऊंट की सवारी करवाने व ऊंट दौड़ाने जैसी क्रीड़ाओं के लिये भी मानव व्यापार द्वारा सप्लाई की जाती है। फरेबी विवाहों व गोद लेने की प्रक्रिया के जरिये, अपहरण आदि के जरिये भी मानव व्यापार किया जाता है।

देश के अनेक इलाकों में अत्यन्त गरीबी, भुखमरी और तबाही, सूखा या बाढ़ ग्रस्त इलाकों में तबाही, बड़े पैमाने पर बेरोजगारी, प्राकृतिक तथा मनुष्य-निर्यात दुर्घटनाओं, गुटवादी व साम्प्रदायिक हिंसा और सामाजिक झगड़ों के पीड़ितों का मजबूरन विस्थापन और आप्रवासन – ये अवैध मानव व्यापार के पनपने के पीछे कुछ मुख्य परिस्थितियां हैं। समाचार सूत्रों के अनुसार, कुछ मुख्य इलाके जहां से महिलाओं और बच्चों का व्यापार होता है, वे हैं तमिलनाडु के डिंडीगल, मदुरई, तिरुचिरापल्ली और चेंगलपट्टु, बिहार के गया, किशनगंज, पटना, काटिहार, पुर्णिया, अररिया और मधुबनी, पश्चिम बंगाल में मुरशिदाबाद और 24 परगना, असम के कई जिले, उत्तार प्रदेश में महाराजगंज, राजस्थान में धोलपुर, अलवर और टौंक, कर्नाटक में मैंगलौर, गुलबर्ग और रायचूर, झारखंड और छत्ताीसगढ़ इत्यादि। नेपाल और बांग्लादेश से भी महिलाओं और बच्चों को देशों में महानगरों में लाया जाता है। हिन्दोस्तानी शहरों के अलावा, इन महिलाओं और बच्चों को थाईलैंड, केन्या, दक्षिण अफ्रीका तथा मध्य पूर्वी देशों – बाहरेन, दुबई, ओमान, दक्षिण कोरिया और  फिलिपींस में भी सप्लाई किया जाता है।

मानव व्यापार के शिकार बने बेबस बच्चों व महिलाओं की त्रासदी को समझने के लिये हमें यह समझना होगा कि उन्हें न सिर्फ अपने घरों में असहनीय गरीबी, शोषण और कठिनाइंयों का समाना करना पड़ता है, जिन हालतों में उन्हें खरीद लिया जाता है, बल्कि उन्हें बेहतर भविष्य के सपनों से लुभाया जाता है और फिर उन्हें बेरहम दर्ुव्यवहार, यौनिक अत्याचार व उत्पीड़न झेलना पड़ता है, उन्हें ऐसे काम करने को मजबूर किया जाता है जो नीच, अपमानजनक शारीरिक तौर पर भारी व खतरनाक और मानसिक तौर पर दर्दनाक है। उन्हें बहुत कम पैसा दिया जाता है, उनकी आमदनी का अधिकतम हिस्सा ठेकेदारों या व्यापारी दलालों द्वारा हड़प लिया जाता है, उन्हें अकसर कई महीनों तक बिना वेतन काम करना पड़ता है, और ठगी दलालों के चंगुल से बचने का उनके पास कोई रास्ता नहीं होता। अकसर वे तबाहकारी व घातक बीमारियों, एड्स, अन्य यौन संक्रमक मर्जों, फेफड़ों के संक्रमण, आदि के शिकार बनते हैं। कई बुरी तरह घायल और जीवन भर के लिये अपंग हो जाते हैं। कई जल्दी ही मर जाते हैं। इन पीड़ितों को कोई कानूनी मदद नहीं मिलती। राज्य के अधिकारी मानव व्यापारी दलालों के साथ मिले-जुले होते हैं और इन पीड़ितों को और ज्यादा तड़पाते व बेइज्ज़त करते हैं।

चूंकि मानव व्यापार का अवैध करार दिया गया है, अत: इसके विस्तार के बारे में बहुत कम आंकड़े उपलब्ध हैं। व्यवसायिक यौन कर्म वेश्यावृति के अलावा दूसरे कार्यों के लिये मानव व्यापार के बारे में भी बहुत कम सूचना उपलब्ध है। 2005 की एक रिपोर्ट के अनुसार, मानव व्यापार के लगभग 60 प्रतिशत शिकार 18 वर्ष से कम उम्र के हैं। हिन्दोस्तान में महिलाओं और बच्चों के व्यापार पर एन.एच.आर.सी. की एक रिपोर्ट (1996) के अनुसार, हिन्दोस्तान में यौन व्यवसाय में शामिल महिलाओं और बच्चों की संख्या 70,000 से 10 लाख के बीच में है, जिनमें 30 प्रतिशत 20वर्ष के हैं। इनमें लगभग 15प्रतिशत ने 15 वर्ष की उम्र से पहले यौन कर्म शुरू किया था और 25 प्रतिशत 15-18वर्ष के बीच की उम्र में यौन कर्म से जुड़े थे। अब तक ये आंकड़े इससे कई गुना ज्यादा होंगे।

मानव व्यापार को रोकने के लिये कागज़ पर कई कानून हैं। कुछ संसद में पास किये गये कानून हैं, तो कुछ और राज्य विधान सभाओं द्वारा पास किये गये कानून हैं और इनके अलावा संविधान के भी कुछ प्रावधान हैं। मिसाल के तौर पर संविधान का दफा 23 मानव व्यापार व जबरन श्रम पर रुकावट लगाता है जबकि दफा 24 बाल मजदूरी को रोकता है। दंड संहिता में मानव व्यापार को रोकने के लिये लगभग 25 प्रावधान हैं। कई और कानून हैं, जैसे कि महिलाओं व लड़कियों का अवैध व्यापार निषेधक कानून, बाल मजदूरी कानून, इनफॉरमेशन टेकनॉलजी एक्ट 2000 (जो अश्लील विषयों के प्रकाशन व इलेक्ट्रॉनिक प्रसार पर निषेध लगाता है), नाबालिग न्याय कानून, कर्नाटक व आंध्र प्रदेश देवदासी निषेधक कानून, इत्यादि। मानव व्यापार को रोकने के लिये कई अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों पर भी हिन्दोस्तानी सरकार ने हस्ताक्षर कर रखा है। परन्तु इस सब के बावजूद यह बर्बर प्रथा पनपती रहती है, क्योंकि राज्य तंत्र और कानून लागू करने वाली एजेंसियां अपनी आंखें बंद कर लेती हैं और मानव व्यापार के दलालों के साथ मिलकर काम करती हैं। इससे इस ''आधुनिक'' समाज का असली रूप खुलकर सामने आता है, जिस के अधार पर हिन्दोस्तानी शासक वर्ग एक उन्नत देश बतौर दुनिया में अपने स्थान का दावा कर रहा है। मानव व्यापार के अमानवीय अभ्यास के बढ़ने के लिये केन्द्र व राज्यों की सरकारों को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराना होगा।

इतने बड़े पैमाने पर मानव व्यापार का प्रचलन पूंजीवादी व्यवस्था के असली स्वरूप को दर्शाता है, जिसमें इंसानों, महिलाओं और बच्चों को विक्रय वस्तुओं जैसे माना जाता है और निजी मुनाफे के लिये उन्हें बेचा-खरीदा जाता है। इस व्यवस्था में पहले तो लोगों को गुरबत और अभाव की हालतों में जीने को मजबूर किया जाता है, फिर उनकी इन दुखद हालतों का फायदा उठाकर उन्हें और तड़पाया जाता है। इससे इस अमानवीय पूंजीवादी व्यवस्था को खत्म करने और समाजवाद की स्थापना करने की सख्त जरूरत और स्पष्ट हो जाती है, जिसमें जनता का सुख और खुशहाली समाज की प्रेरक शक्ति होगी, न कि अधिकतम निजी मुनाफों की लालच।

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