ब्रिक्स देशों – ब्राज़ील, रूस, हिन्दोस्तान, चीन और दक्षिण अफ्रीका – के नेता मार्च के अंत में नई दिल्ली में मिले। ब्रिक्स एक हाल में बनाया गया देशों का समूह है (दक्षिण अफ्रीका सबसे हाल का सदस्य है) जो दुनिया के मंच पर उभर कर आ रहा है। मिलाकर इन देशों में दुनिया की आबादी का 43 प्रतिशत रहती है और पूरी दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद का 40 प्रतिशत इन देशों से है। हाल के वर्षों में इन देशों ने, अलग-अल
ब्रिक्स देशों – ब्राज़ील, रूस, हिन्दोस्तान, चीन और दक्षिण अफ्रीका – के नेता मार्च के अंत में नई दिल्ली में मिले। ब्रिक्स एक हाल में बनाया गया देशों का समूह है (दक्षिण अफ्रीका सबसे हाल का सदस्य है) जो दुनिया के मंच पर उभर कर आ रहा है। मिलाकर इन देशों में दुनिया की आबादी का 43 प्रतिशत रहती है और पूरी दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद का 40 प्रतिशत इन देशों से है। हाल के वर्षों में इन देशों ने, अलग-अलग या मिलकर, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र संगठन जैसे वैश्विक मंचों में ज्यादा सुनवाई तथा वैश्विक वित्ता संस्थानों के पुनर्गठन की इच्छा प्रकट की है। अमरीका व यूरोपीय संघ के गहराते आर्थिक संकट और इस समय इन पांच देशों की अर्थव्यवस्थाओं की तुलनात्मक तेज़ गति से वृध्दि तथा अंतर्राष्ट्रीय तौर पर उनके आर्थिक प्रभाव में परिवर्तन की वजह से ऐसा वातावरण पैदा हुआ है, जिसमें इन देशों के पूंजीपति अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपना प्रभाव विस्तृत करना चाहते हैं। इनमें से प्रत्येक देश के साम्राज्यवादी पूंजीपति उस ''बहु ध्रुवीय दुनिया'' के सक्रिय हिमायती हैं, जिसमें दूसरे देशों व लोगों की भूमि, संसाधनों व श्रम पर उनका प्रभुत्व जमाना व उनके द्वारा लूट ज्यादा आसान हो जायेगा। हालांकि ब्रिक्स का हरेक सदस्य देश अपने हित के लिये अमरीका के साथ सहयोग करता है, परन्तु जहां-जहां उनके अपने हितों को खतरा महसूस होता है, वहां वे अमरीका से स्पर्धा भी करते हैं। अमरीका द्वारा अपने प्रभुत्व तले एक ध्रुवीय दुनिया बनाने की कोशिश से यह सभी राज्य सतर्क हैं। नई दिल्ली में मार्च 2012 में ब्रिक्स शिखर बैठक के ऐलान से भी यह स्पष्ट होता है।
इन पांचों देशों को सरकारों ने मिलकर अपने वर्तमान आर्थिक प्रभाव के अनुकूल, अपनी आवाज को ज्यादा बुलंद करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष व विश्व बैंक के सुधार की मांग की। सभी जानते हैं कि इस समय अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष व विश्व बैंक पर अमरीका और यूरोपीय संघ का बोलबाला है। वर्तमान वैश्विक आर्थिक संकट, जिसका यूरोपीय संघ पर खास बुरा असर हुआ है, की हालतों में ब्रिक्स के देशों को अपने हित के लिये इन अंतर्राष्ट्रीय वित्ता संस्थानों में ज्यादा सुनवाई की मांग करने का मौका मिला है। साथ ही साथ, उन्होंने ऐलान किया कि अपने विकास के लिये उधार के संसाधनों को इकट्ठा करने के इरादे से वे विश्व बैंक के नमूने के अनुसार, अपने आपस में एक नया विकास बैंक स्थापित करने की संभावना को तलाशेंगे।
संयुक्त ऐलान में इन पांच देशों के पूंजीपतियों ने अपनी यह चिंता प्रकट की कि अमरीका व यूरोपीय संघ ''हरित अर्थव्यवस्था'' की धारणा का इस्तेमाल करके इन देशों के पूंजीपतियों पर निशाना साध सकते हैं। इस विषय पर ध्यान दिया जाये कि ''मौसम परिवर्तन'' और पर्यावरण सुरक्षा पर अंतर्राष्ट्रीय शिखर वार्ताओं में अमरीका और यूरोपीय संघ ने हमेशा दूसरे देशों पर ऐसे मानक थोपने के प्रयास किये हैं, जिनसे अमरीका व यूरोपीय पूंजीपतियों को दूसरे देशों के पूंजीपतियों की तुलना में कुछ ज्यादा फायदा होगा। इस सदर्भ में ब्रिक्स ऐलान में यह फैसला किया गया कि ''हरित अर्थव्यवस्था विकसित करने के नाम पर, व्यापार व पूंजीनिवेश पर किसी भी प्रकार के प्रतिबंधों को लगाने की कोशिशों का विरोध किया जायेगा''।
संयुक्त ऐलान में उत्तारी अफ्रीका व पश्चिम एशिया की गतिविधियों पर चिंता प्रकट की गई। रूस, चीन, व हिन्दोस्तान के हित, अलग-अलग हद तक, इस इलाके से जुड़े हुये हैं, जो दूसरे संसाधनों के अलावा, तेल और गैस में बहुत संपन्न है। ब्रिक्स देशों में पूंजीपति जानते हैं कि अमरीकी साम्राज्यवादी और उनके मित्र इस इलाके पर अपना प्रभुत्व जमाने की कोशिश कर रहे हैं, जो चीन, हिन्दोस्तान तथा दूसरे ऊर्जा के भूखे देशों के लिये ऊर्जा का मुख्य स्रोत है। परन्तु संयुक्त ऐलान में साम्राज्यवादी दबाव ब्लैकमेल और सैनिक हमलों से मुक्त, खुद अपना भविष्य तय करने के लिये लोगों व राष्ट्रों के संप्रभु अधिकार की हिफाज़त नहीं की गयी। लिबिया को फिर से उपनिवेश बनाने के लिये अमरीका नीत नाटो ताकतों द्वारा किये गये बेरहम युध्द का कोई जिक्र नहीं किया गया। सिरिया में चल रहे गृह युध्द में सिरियन सत्ता-विरोधियों को अमरीका व नाटों द्वारा हथियार दिये जाने का कोई जिक्र या निंदा नहीं की गई। अमरीका – यूरोपीय संघ द्वारा ईरान पर दबाव और ब्लैकमेल, हमला करने की धमकी, आदि का कोई जिक्र न था। संयुक्त राष्ट्र के संरक्षण में झगड़ों को ''शान्तिपूर्ण तरीके से हल करने'' की कुछ हल्की सी अपील की गयी। यानि, ब्रिक्स ऐलान ने चीन, रूस और हिन्दोस्तान की यह इच्छा प्रकट की कि अमरीका नीत एकतरफा कार्यवाहियों में इन देशों को छोड़ न दिया जाए। अफगानिस्तान के मुद्दे पर इन पांचों देशों के साम्राज्यवादी रवैये स्पष्ट थे। अफगानिस्तान में अमरीका व नाटो ताकतों द्वारा किये गये विनाश की निंदा तो दूर, ब्रिक्स ऐलान में 2024 तक उस देश पर कब्ज़ा बनाये रखने की मांग की गयी! यह स्पष्ट है कि हिन्दोस्तान, चीन व रूस की सरकारें अफगानिस्तान के संदर्भ में, विदेशी हुक्मशाही से मुक्त खुद अपना भविष्य तय करने के उस देश के लोगों के बारे में नहीं सोचती हैं, बल्कि अपने भूराजनीतिक दांवपेच में उसे इस्तेमाल करने के बारे में ही सोचती हैं।
दूसरे साम्राज्यवादी समूहों की तरह, ब्रिक्स समूह में भी सदस्य देशों के आपस में कई अंतर्विरोध हैं। मिसाल के तौर पर, असमान व्यापार संबंधों के कारण, हिन्दोस्तान व चीन के बीच अंतर्विरोध हैं। म्यानमार, दक्षिण सूडान व अफ्रीका के अन्य देशों में वे ऊर्जा व अन्य संसाधनों के लिये स्पर्धा कर रहे हैं। नेपाल, श्रीलंका और दक्षिण-पूर्वी एशिया में भी इनकी आपसी स्पर्धा है। संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य बनने के हिन्दोस्तान के प्रयासों का चीन समर्थन नहीं करता है और चीन अमरीका – हिन्दोस्तान गठबंधन से सतर्क है, जो चीन को घेरने की कोशिश मानी जा रही है।
ब्रिक्स के उभरने से यह स्पष्ट होता है कि जिन राज्यों ने पहले से अपने उपनिवेशी व नव-उपनिवेशी क्षेत्रों पर, अपने प्रभाव क्षेत्रों पर अपनी प्रधानता जमा रखी है, तथा नई साम्राज्यवादी ताकतें जो अब तेज़ी से बढ़ रही हैं और अपना ''जायज हिस्सा'' मांग रही हैं, इनके बीच में तीक्ष्ण संघर्ष चल रहा है। ब्रिक्स के सदस्य, चीन, हिन्दोस्तान और रूस के साम्राज्यवादी पूंजीपति तेज़ी से अपने-अपने प्रभाव क्षेत्रों का विस्तार करना चाहते हैं। इन देशों के पूंजीपति आपस में समझौते करके, अमरीका व यूरोपीय संघ के साथ स्पर्धा में, अपने-अपने लिये बेहतर सौदे करना चाहते हैं।
अमरीकी साम्राज्यवाद जो ''एक ध्रुवीय दुनिया'' चाहता है और वे दूसरे साम्राज्यवादी जो ''बहुध्रुवीय दुनिया'' के लिये लड़ रहे हैं, दोनों ही अंतर-साम्राज्यवादी अंतर्विरोधों को और तीक्ष्ण करने में मदद दे रहे हैं। दुनिया के और इलाकों में साम्राज्यवादी जंग के फैलने का खतरा बढ़ रहा है। इन परिस्थितियों में हमारी पार्टी को हिन्दोस्तानी पूंजीपतियों के खतरनाक साम्राज्यवादी रास्ते के बारे में मजदूर वर्ग व मेहनतकशों को शिक्षा देनी होगी।