वोल्टास लि.एयर कंडीशनिंग और इंजीनियरिंग सेवाओं के लिए टाटा समूह की जानी-मानी कंपनी है। इसमें पिछले 15 वर्षों से स्थायी श्रमिकों की भर्ती बंद है। यहां के श्रमिक अपनी मांगों को लेकर कंपनी के मुंबई स्थित चिंचपोकली कार्यालय पर पिछले 142 दिनों से लगातार क्रमिक भूख हड़ताल कर रहे हैं। इसी बीच प्रबंधन ने पुलिस के द्वारा उन्हें धमकाने, हटाने और शारीरिक चोट पहुंचाने की कई बार असफल कोशिश की है। नेतृत्वकारी श्रमिकों को निलंबित भी कर दिया गया था।
26 सितम्बर, 2011 को वोल्टास लिमिटेड के मजदूरों ने आल इंडिया वोल्टास इंप्लाईज फेडरेशन की अगुवाई में अपनी मांगों को लेकर संसद पर धरना दिया। ये श्रमिक पिछले 15 वर्षों से स्थायी मजदूरों की भर्ती न करने, द्विपक्षीय समझौते का उल्लंघन करने के खिलाफ़ व ठेकेदारी बंद करने की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे हैं।
इस धरने में हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के प्रवक्ता प्रकाश राव ने शामिल होकर वोल्टास कर्मचारियों के हौसले को बढ़ाया। लोक राज संगठन ने धरने में शामिल होकर अपना समर्थन दिया।
वोल्टास लि.एयर कंडीशनिंग और इंजीनियरिंग सेवाओं के लिए टाटा समूह की जानी-मानी कंपनी है। इसमें पिछले 15 वर्षों से स्थायी श्रमिकों की भर्ती बंद है। यहां के श्रमिक अपनी मांगों को लेकर कंपनी के मुंबई स्थित चिंचपोकली कार्यालय पर पिछले 142 दिनों से लगातार क्रमिक भूख हड़ताल कर रहे हैं। इसी बीच प्रबंधन ने पुलिस के द्वारा उन्हें धमकाने, हटाने और शारीरिक चोट पहुंचाने की कई बार असफल कोशिश की है। नेतृत्वकारी श्रमिकों को निलंबित भी कर दिया गया था।
आज पूरे देश में देशी-विदेशी बड़े-बड़े सेवा संस्थानों, विनिर्माण क्षेत्रों, वित्त संस्थानों आदि में श्रमिकों को सामान्य श्रेणी में भर्ती न करके, प्रबंधकीय, ठेका और अनुबंध श्रेणी में भर्ती किया जाता है। ऐसा करके पूंजीपति श्रमिकों को यूनियन में संगठित होने के अधिकार व श्रम कानूनों से वंचित करते हैं। शिक्षा, रेलवे, परिवहन, बैंक, बीमा इत्यादि क्षेत्रों में ऐसा धड़ल्ले से चल रहा है। दूसरा, इन बड़ी-बड़ी कंपनियों में मात्र थोड़े से श्रमिकों की मोटी-मोटी तनख्वाह का जोर-शोर से प्रचार करके, बहुसंख्यक श्रमिकों को उनके बुनियादी अधिकारों से वंचित करके, उनका अत्यधिक शोषण किया जाता है। निश्चित ही टाटा जो पूंजीपति बतौर सामाजिक जिम्मेदारी निभाने का वादा करता है, अन्य पूंजीपतियों के हित से उसके हित अलग नहीं हैं।
वे सभी मजदूर हैं, जो अपना मानसिक और शारीरिक श्रम बेचकर उत्पादन प्रक्रिया में शामिल होते हैं तथा अपने श्रम के बदले उन्हें एक निश्चित तनख्वाह मिलती है। हमें पूंजीपतियों की ऐसी परिभाषाओं, जैसे ठेके, संविदा, असंगठित, प्रबंधकीय श्रेणी इत्यादि, जिनके आधार पर मजदूरों में बंटवारा किया जाता है, इन्हें मानने से इंकार करना होगा। सेवा या उत्पादन से जुड़े हरेक श्रमिक को संगठित होने और श्रम कानूनों के दायरे में माने जाने की मांग करनी होगी।
वोल्टास आन्दोलनकारी मजदूरों के प्रतिनिधि का.रमेश नायर ने मजदूर एकता लहर को स्पष्ट बताया कि पहले एक इंजीनियर के नीचे 2 सुपरवाइजर तथा उसके नीचे 7-8 मैकेनिक हुआ करते थे। अब यह अनुपात बहुत ही कम हो गया है। अब श्रमिक, जो यूनियन में संगठित हो सकते हैं, की जगह पर उन्हें ‘प्रबंधकीय स्टाफ’ के रूप में भर्ती कर रहे हैं। प्रबंधकीय स्टाफ को यूनियन में संगठित होने का अधिकार नहीं है। काम उनका वही है, जो आम श्रमिक के होते हैं। अब हालत यह है कि 3000 प्रबंधकीय स्टाफ हैं, तो 600 कामगार हैं, जो यूनियन में संगठित हो सकते हैं, और करीब 8000 कामगार ठेके पर काम करते हैं। समान काम की प्रकृति के लिए प्रबंधक श्रमिक और आम श्रमिक के बीच तथा ठेके श्रमिकों की तनख्वाह के बीच कई गुणा अंतर रखा जा रहा है। पिछले तीन वर्षों से आम स्टाफ को बोनस भी नहीं दिया गया है।