मजदूर एकता लहर के संवाददाता ने सिरसा हरियाणा में 28अगस्त 2011को हुई आम चर्चा में हिस्सा लिया। इस सभा में महंगाई, भ्रष्टाचार, सर्वव्यापक सार्वजनिक वितरण व्यवस्था, भूमि अधिग्रहण, राजकीय आतंकवाद, जैसे लोगों से सारोकार रखने वाले मसलों और खास तौर से लोगों के हाथों में सत्ता कैसे आयेगी, इस बात पर चर्चा हुई। चर्चा में लोगों की सक्रिय भागीदारी और उसका उच्च स्तर यह दिखाता है कि अब लोग इस बात से सचेत
मजदूर एकता लहर के संवाददाता ने सिरसा हरियाणा में 28अगस्त 2011को हुई आम चर्चा में हिस्सा लिया। इस सभा में महंगाई, भ्रष्टाचार, सर्वव्यापक सार्वजनिक वितरण व्यवस्था, भूमि अधिग्रहण, राजकीय आतंकवाद, जैसे लोगों से सारोकार रखने वाले मसलों और खास तौर से लोगों के हाथों में सत्ता कैसे आयेगी, इस बात पर चर्चा हुई। चर्चा में लोगों की सक्रिय भागीदारी और उसका उच्च स्तर यह दिखाता है कि अब लोग इस बात से सचेत हो चुके हैं कि उनके तमाम सवालों का हल इस बात में है कि लोगों के हाथों में सत्ता आये। आसपास के गांवों और शहरों के अलावा हरियाणा, और राजस्थान के अन्य गावों और शहरों से लोगों ने इस सभा में हिस्सा लिया, जिसमें किसान, शिक्षक, मजदूर और विद्यार्थी शामिल थे। लोक राज संगठन ने इस चर्चा को आयोजित किया था।
सभा की अध्यक्षता कामरेड हनुमान प्रसाद ने की और कामरेड अशोक ने इसका संचालन किया। चर्चा के बीच में कई प्रगतिशील गीत और कवितायें भी पेश की गयी।
कामरेड हनुमान प्रसाद ने दो तरह के विकास के बीच का फर्क बताया – एक नजरिया है हमारी जमीन और मेहनत की अधिकतम लूट के आधार पर तेजी से हो रहा आर्थिक संवर्धन, और दूसरा है आम लोगों की जिंदगी के स्तर को ऊपर उठाने का नजरिया।
1857में हमारे देश के लोग शोषकों का तख्तापलट करने के लिए एकजुट हुए थे। इन बागियों ने ऐलान किया था कि उन्हें लोगों का राज बसाना है। इस ग़दर को बेरहमी से कुचलने के बाद बर्तानवी उपनिवेशवादियों ने हमारी एकता तोड़ने और शोषण और दमन के खिलाफ़ हमारे जज़बात को दबाने की पूरी कोशिश की। 1947में बर्तानवी उपनिवेशवादियों के दमनकारी राज्य की जगह हिन्दोस्तानी सत्ताधारी वर्ग के दमनकारी और शोषक राज ने ली।
मौजूदा व्यवस्था किसानों और सभी मेहनतकशों को लूट रही है, उन्हें बर्बाद कर रही है और अमीर औद्योगिक घरानों की तिजोरियां भर रही है। “बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहाँ से खाए?” सभी किसान संगठनों को सरकार द्वारा प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण कानून का विरोध बहादुरी से करना चाहिए।
चर्चा के लिए उठाये गए सभी पांच विषय एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। राजकीय आतंकवाद का सीधा सम्बंध मेहनतकश लोगों के दमन से है। जब आदिवासी और अन्य लोग अपने अधिकारों के लिए लड़ते हैं और सरकार उन्हें गोलियों से भूनती है, यह राजकीय आतंकवाद है। इस तरह से ज़मीर के अधिकार का इस्तेमाल करने वाले लोगों पर सरकार हमला करती है, तो ये लोग भी राजकीय आतंकवाद के शिकार हैं। महंगाई भी मेहनतकश लोगों के जीवन स्तर पर एक हमला है। इससे लोगों का शोषण बढ़ता है। इन सबसे दिखता है कि लोगों को राज्य सत्ता से वंचित किया गया है।
कामरेड हनुमान प्रसाद ने कहा कि हमें ठन्डे दिमाग से सोचना होगा कि किस तरह से लोगों के हाथों में सत्ता आएगी। इस तरह की चर्चा पूरे देश में आयोजित की जानी चाहिए। इससे विचारों का मंथन होगा और सबसे बढि़या और उच्च विचार लोगों की चेतना में बैठेगा, उन्होंने कहा।
कामरेड बिज्जू नायक ने भ्रष्टाचार-विरोधी आन्दोलन में लोक राज संगठन की कार्यवाही के बारे में बताया। उन्होंने अन्ना हजारे के नेतृत्व में चलाये गए इस आन्दोलन के अनुभव के सबक और सार पेश किये। संसद में बैठी सभी मुख्य पार्टियां इस बात पर एकजुट हैं कि फैसले लेने में लोगों की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिये। उनके मुताबिक फैसले लेने की ताकत केवल संसद में होनी चाहिये। लेकिन हज़ारों की तादाद में सड़क पर उतर कर लोगों ने इस दावे को चुनौती दी है।
बिज्जू नायक ने कहा कि लोगों के हाथों में फैसले लेने की ताकत देने के लिए हमारी राजनीतिक व्यवस्था और प्रक्रिया का नवीकरण करने की जरूरत है, और लोगों की यही मांग है। अंत में सरकार को लोगों के आगे झुकना पड़ा और लोक पाल के सम्बंध में मुख्य विषयों पर चर्चा को स्वीकार करना पड़ा। हमें आंशिक सफलता मिली है। इसके आगे लोक राज की दिशा में हम कितनी दूर जाते हैं, यह हम सब पर निर्भर है।
इस मंथनसभा में शामिल थे आई.आई.टी. शिक्षक संघ के कार्यकर्ता प्रोफ़ेसर भरत सेठ, लोक राज संगठन के नेता दुनी चंद, जींद के किसान नेता राम फल कंडेला, राजस्थान सरपंच यूनियन के प्रमुख नेता ओम साहू, किसान संघर्ष समिति गोरखपुर के हंसराज, किसान यूनियन फेडरेशन हरियाणा के राम स्वरुप, जन संघर्ष समिति जींद के श्री पाल सिंह, वरिष्ठ नागरिक संगठन के लाल चंद गुजरा, इत्यादि।
सभी वक्ताओं ने बताया कि मौजूदा राज्य और राजनीतिक व्यवस्था और प्रक्रिया लोगों की आकांक्षाओं के मुताबिक नहीं है। लोग यह मांग कर रहे हैं कि राज्य के सभी संस्थानों पर उनका नियंत्रण हो। लेकिन अधिकतर कानून अंग्रेजों के जमाने के हैं। मौजूदा राज्य उपनिवेशवादी विरासत का हिस्सा है और लोगों को अपना दुश्मन मानता है और उनका दमन करता है। पार्टीवादी व्यवस्था, चुनावी कानून, सब मिलकर सुनिश्चित करते हैं कि लोगों को फैसले लेने का कोई अधिकार नहीं है। चुने गए प्रतिनिधि लोगों के प्रति जवाबदेह नहीं होते हैं। वे केवल अपनी पार्टी के प्रति जवाबदेह होते हैं। इस तरह से सत्ताधारी पार्टी की हाई-कमान अमीर पैसे वालों की मर्जी सभी लोगों पर थोपती है।
उन्होंने कहा कि लोगों को अपनी सारी ताकत अपने प्रतिनिधि के हाथों में नहीं सौंपनी चाहिए, बल्कि इन प्रतिनिधियों पर नियंत्रण रखने के लिए सत्ता अपने हाथों में रखनी चाहिए। पार्टीवादी व्यवस्था को खत्म करना होगा। पार्टियों की भूमिका को पुनः परिभाषित करना होगा; जिसके मुताबिक पार्टियां लोगों को सत्ता में लाने और बनाये रखने का साधन होंगी। यदि कोई प्रतिनिधि अपने मतदान क्षेत्र के लोगों की मर्जी के खिलाफ जाता है तो उसे वापस बुलाने का अधिकार लोगों के हाथों में होगा। लोगों को नए कानून प्रस्तावित करने, मौजूदा कानून में संशोधन करने और महत्वपूर्ण विषयों पर जन-मत संग्रह के द्वारा अपना मत प्रकट करने का अधिकार होना चाहिए।
वक्ताओं ने प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास बिल का विरोध किया। उन्होंने बताया कि ग्रामीण विकास मंत्रालय ग्रामीण लोगों की रोजी-रोटी को बर्बाद करने का साधन बन गया है। हरियाणा सरकार ने हाल ही में एक कानून पास किया है जिसके अंतर्गत बड़ी कंपनियों की मालिकी की ज़मीन पर से सीलिंग (सीमा) हटा दी गयी है। गोरखपुर के लोगों के विरोध को नज़रंदाज़ करके, इस इलाके में अणु-उर्जा संयन्त्र लगाने की सरकार की योजना की भी निंदा की।
सभा इस निष्कर्ष पर पहुंची कि आज की सभी समस्याओं का केवल एक ही समाधान है, और वह है लोक राज। सभा ने इस दिशा में संघर्ष तेज करने का आह्वान किया।