हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की दिल्ली इलाका समिति का बयान, 9 सितम्बर 2011
सरकार का दावा है कि वह हमारे मेहनत की कमाई का सिर्फ 600 करोड़ रु. ऐंठने वाली है। पहले ही राष्ट्रमंडल खेलों के जरिये हजारों करोड़ों रुपयों से कंपनियों, नेताओं और अफसरों की जेबें भरी जा चुकी हैं। इसमें दूसरे तरीकों से लूट की वह बहुत बड़ी राशि शामिल नहीं है जिसके बारे में लोग सचेत हैं और जिसको भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लोगों के आंदोलन ने उठाया है।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की दिल्ली इलाका समिति का बयान, 9 सितम्बर 2011
1 सितम्बर, 2011 से दिल्ली सरकार ने बिजली दर में 22 प्रतिशत की वृद्धि की है।
दिल्ली के मेहनतकश लोगों पर यह एक बहुत बड़ा हमला है। खाद्य पदार्थों, पेट्रोल व गैस की कीमतों में वृद्धि के साथ-साथ, अब हमें बिजली के लिये, जो आधुनिक समाज की इतनी मौलिक जरूरत है, पिछले साल के मुकाबले, 22 प्रतिशत ज्यादा भुगतान करना पड़ेगा। गरीबों, सेवानिवृत्त लोगों और अधिकांश लोगों, जिन्हें मंहगाई भत्ता नहीं मिलता है, उन पर यह एक भयंकर हमला है।
बिजली क्षेत्र की तीनों निजी सेवा प्रदान करने वाली कंपनियों के मुनाफे के दृष्टिकोण से, मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इस वृद्धि को उचित बताया है। उन्होंने दिल्ली बिजली नियामक आयोग (डी.इ.आर.सी.) के अध्यक्ष की घोषणा का सहारा़ लिया है। हमलों का सिलसिला जारी रखने के लिये डी.इ.आर.सी. ने घोषणा की है कि यह वृद्धि सिर्फ एक पहला कदम है। वे हर तीन महीने में “वितरण कंपनियों को मिलने वाली बिजली की दरों” के आधार पर “बिजली दर की समीक्षा करेंगे”।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की दिल्ली इलाका समिति, अपने लोगों के जीवन पर इस भारी हमले की कड़ी निंदा करती है।
सरकार का दावा है कि वह हमारे मेहनत की कमाई का सिर्फ 600 करोड़ रु. ऐंठने वाली है। पहले ही राष्ट्रमंडल खेलों के जरिये हजारों करोड़ों रुपयों से कंपनियों, नेताओं और अफसरों की जेबें भरी जा चुकी हैं। इसमें दूसरे तरीकों से लूट की वह बहुत बड़ी राशि शामिल नहीं है जिसके बारे में लोग सचेत हैं और जिसको भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लोगों के आंदोलन ने उठाया है।
पिछले कुछ वर्षों से, दिल्ली सरकार “लोक सुनवाइयों” का “नाटक” करती आयी है। हम इसे नाटक क्यों कहते हैं?
क्योंकि जब हम लोग, अपने संगठनों के नाम पर, प्रस्ताव रखते हैं, तब वे उनमें से कुछ भी स्वीकार नहीं करते हैं।
सिर्फ उन प्रस्तावों को ही स्वीकृति मिलती है, जो सरकार के मूल्यांकन में, पूंजीपतियों और सत्ताधारी पक्ष या गठबंधन के अनुकूल हों।
जैसा सर्व हिन्द स्तर पर होता है, वैसा ही दुःखद तरह से दिल्ली के स्तर पर भी दोहराया जाता है।
यहां राजधानी क्षेत्र में, जहां मेहनतकश लोगों के सबसे अग्रिम और सचेत हिस्से रहते हैं और रोजगार पाते हैं, वहां ऐसा करके वो हम सब हिन्दोस्तानी लोगों की खिल्ली उड़ाते हैं।
दिल्ली के सभी इलाकों में निवासी कल्याण संगठनों (आर.डब्ल्यू.ए.) ने इस हमले का विरोध किया है। उन्होंने घोषणा कर दी है कि वे बढ़ी हुई दर की बिजली का भुगतान नहीं करेंगे चाहे बिजली ही क्यों न कट जाये। अपने संघर्ष की यह एक अच्छी शुरुआत है।
हमारे संघर्ष को बांटने के लिये सरकार और शासक वर्ग की पार्टियां कई हरकतें कर रही हैं।
उनका पहला कदम – मीडिया में घोषणा करना – 31 लाख उपभोक्ताओं में से 19 लाख पर बिजली दर बढ़ने का प्रभाव नहीं पड़ेगा।
कम बिजली का इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ताओं के लिये सहायकी दी जायेगी। जिन घरों में सिर्फ एक ट्यूब लाईट या सिर्फ एक पंखा है, उन पर दर बढ़ोतरी लागू नहीं की जायेगी।
इसका क्या मतलब है? कुछ समय के लिये, जो बहुत कम उपभोग करते हैं या कम उपभोग दिखाते हैं, उनको कम दर पर बिजली मिलेगी और दूसरों को करीब 30 प्रतिशत ज्यादा दर पर बिजली मिलेगी। निस्संदेह, बाद में वे तुलनात्मक तौर पर अधिक धन वालों की दर को कायम रखते हुये, गरीबों की बिजली की दर को बढ़ा देंगे। सत्तारूढ़ पार्टियों की यह “चतुराई भरी” तरकीब है।
दिल्ली के लोगों और विभिन्न आर.डब्ल्यू.ए. द्वारा उठाये एक प्रश्न का जवाब दिल्ली सरकार ने नहीं दिया है – पिछले डी.इ.आर.सी. के अध्यक्ष ने कहा था कि कंपनियों ने बड़ा मुनाफा कमाया था और उन्होंने बिजली दरों को बढ़ाने से इनकार किया था। अब एक साल में क्या बदला है?
पूर्व डी.इ.आर.सी. के अध्यक्ष ने पाया था कि बिजली कंपनियों ने पिछले साल 6000 करोड़ रु. का मुनाफा कमाया था। इस आधार पर, उन्होंने बिजली दर में वृद्धि की अनुमति नहीं दी। जाहिर है कि मुनाफों को और बढ़ाने के लिये वर्तमान वृद्धि की जा रही है: यह लोगों के हित के खिलाफ़ और इजारेदारों के हित में कदम है।
असलियत में, दिल्ली सरकार वितरण कंपनियों को मुनाफे की एक न्यूनतम दर सुनिश्चित कराने वाली नीति का अनुसरण करती है। यह एनरान वाली नीति ही है।
लोगों को पूछने का पूरा अधिकार है कि वितरण कंपनियों का खर्चा क्या है, इसका निर्धारण कौन करता है? इस खर्चे के निर्धारण का क्या आधार है?
ये तीनों कंपनियां न बिजली का उत्पादन करती हैं, और न ही उन्होंने कोई नयी सुविधा प्रदान की है। वे तो सिर्फ मुनाफे इकट्ठा करने की एजेंसियां हैं। किसी को इन तीनों वितरकों से यह पूछने का अधिकार नहीं है कि उन्होंने बिजली क्षति में कितनी कमी की है, या बिलों के भुगतान न होने से कितना घाटा है, आदि। आम लोगों के लिये तो सब कुछ पहले जैसा ही है। सिर्फ, भुगतान का बोझ अपने ऊपर बढ़ता जाता है।
इस संदर्भ में दो अलग-अलग घटनायें महत्व रखती हैं।
दरों में वृद्धि के तुरंत पहले, बिजली कंपनियों ने गोवा में एक महफि़ल जमाई। इसमें आमंत्रित थे बिजली दर निर्धारण के केन्द्र और राज्य सरकार के फैसले लेने वाले सबसे अहम व्यक्ति। उन्हें अच्छे से खिलाया-पिलाया गया, खातिरदारी की गयी और यह सहमति बनायी गयी कि पूरे हिन्दोस्तान में दरों में वृद्धि की जानी चाहिये। उन्होंने दिल्ली को परीक्षण स्थल बनाया है। यहां सबसे अधिक मुनाफा है। अगर वे दिल्ली में सफल होते हैं तो हिन्दोस्तान के अन्य इलाकों में, राज्य सरकारों के जरिये, ऐसा करना और भी आसान होगा। सबसे महत्व की बात है कि उन्होंने मिलकर दरों में वृद्धि न होने देने के लिये, पिछली नियामक प्राधिकरण की निंदा की।
एक और गतिविधि है कि केन्द्र सरकार ने “घाटा बनाने वाले” उन राज्य सरकारों से मांग की है कि खरीदी कीमत के साथ, “सब खर्चों की पूर्ति” सुनिश्चित करने के लिये बिजली दरों में बढ़ोतरी करें। इसके जरिये प्रमुख रूप से तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश व अन्य कुछ राज्यों को निशाना बनाया जा रहा है।
दूसरे शब्दों में, केन्द्र सरकार कह रही है – बिजली तुम्हारा अधिकार नहीं है। यह ऐसा अखाड़ा है जिसमें सबसे ज्यादा मुनाफा बनाने वाला रह सकता है। बेशक, लोगों को बांटने के लिये हम दरों के खंड बनायेंगे, परन्तु अंततः उसका नतीजा होना चाहिये कि लोग, पूंजीपति इजारेदारों के अधिकतम मुनाफे सुनिश्चित करें।
2002में जब बिजली वितरण का निजीकरण किया गया था, तब उच्च अधिकारियों की सांठ-गांठ से होने वाले भ्रष्टाचार की वजह से भीषण वितरण क्षति और चोरी के संदर्भ में सरकार ने कहा था कि “निजीकरण से लोगों को फायदा होगा”। तब से दिल्ली के लोगों का अनुभव दिखाता है कि निजी कंपनियां और उच्च अधिकारी अभी भी लाभ उठाते हैं और लोग अभी भी कष्ट झेलते हैं और ज्यादा भुगतान करते हैं।
निजी कंपनियों ने दिल्ली सरकार से विशाल आधारभूत संरचनाओं, उपकरणों, दफ्तरों, सब-स्टेशनों और इमारतों को सस्ते दामों पर ले लिया है। नये मीटर जबरदस्ती करके लगाये गये हैं, जबकि लगाने वाले कहते हैं कि इन्हें जानबूझ कर तेज चलने के लिये सेट किया जाता है। देखरेख के लिये जो मज़दूर काम करते हैं उन्हें ठेके पर रखा जाता है। सिर्फ बिल जमा करने वाले या सेवानिवृत्ति के निकट वाले लोग ही स्थायी नौकरी पर हैं।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की दिल्ली इलाका समिति का आह्वान है कि दिल्ली के मेहनतकश लोग एकता बनायें और एक आवाज में लोगों और उनकी जीविका पर हो रहे हमलों का पर्दाफाश करें तथा विरोध करें। बढ़ाई गयी दर पर भुगतान न करने के आर.डब्ल्यू.ए. द्वारा दिये गये बुलावे का हम समर्थन करते हैं।