हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केंद्रीय समिति का बयान, 4 जुलाई, 2020
हमारे देश में मज़दूर वर्ग की हालत असहनीय हो गई है। बेरोज़गारी, शोषण और ग़रीबी इस हद तक बढ़ गयी है कि इससे पहले कभी नहीं देखी गई।
एक के बाद एक, विभिन्न क्षेत्रों में, लाखों ठेका मज़दूरों, दिहाड़ी मज़दूरों और यहां तक कि नियमित वेतन पाने वाले मज़दूरों को भी उनकी नौकरी से निकाल दिया गया है वह भी बिना किसी नुकसान-भरपाई और मुआवज़ा वेतन के। जो मज़दूर अभी भी काम पर हैं, उनमें से बहुत से मज़दूरों को कई महीनों से वेतन नहीं मिला है।
तालाबंदी के परिणामस्वरूप, करोड़ों मज़दूरों को अपने गांवों और नगरों में वापस लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा है। जो मज़दूर काम करने के लिए शहरों में वापस लौट रहे हैं, उनको कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ पर्याप्त सुरक्षा के बिना, ख़तरनाक परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
मज़दूरों के कर्मचारी भविष्य निधि (ई.पी.एफ.) में, मालिकों के योगदान में कटौती की गई है। साथ ही, इस सेवानिवृत्ति-निधि पर अर्जित ब्याज की दर भी कम कर दी गयी है। मज़दूरों द्वारा कड़ी मेहनत से की गई बचत, पूंजीवादी सट्टेबाजों के हाथों में सौंपी जा रही है। भारी नुकसान के बोझ तले दबी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को ऐसे कर्ज़ लेने के लिए बाध्य किया जा रहा है जो उनके सामर्थ के बाहर है। ऐसा उस परिस्थिति को पैदा करने के लिए किया जा रहा है जिसमें इन कंपनियों को निजी पूंजीवादी कंपनियों के हाथों सौंप दिया जायेगा।
तथाकथित आर्थिक रिवाइवल पैकेज की घोषणा करते हुए, प्रधानमंत्री ने वर्तमान संकट को एक अवसर में बदलने का आह्वान किया। यह पूंजीपति वर्ग के लिए एक सन्देश है कि वे इस संकट का उपयोग, श्रम के शोषण को अधिकतम स्तर तक ले जाने के अवसर के रूप में करें। यह मज़दूरों को उनके अधिकारों से वंचित करने, उनके काम के घंटों को बढ़ाने और उनके वेतनों और सुविधाओं में कटौती करने का आह्वान है। यह सभी केंद्रीय मंत्रालयों को आउटसोर्सिंग और निजीकरण की प्रक्रिया में तेज़ी लाने का आह्वान है। यह सभी राज्य सरकारों से “श्रम कानूनों में सुधार” लाने के लिए एक आह्वान है ताकि मज़दूरों को कठिन संघर्षों के ज़रिये हासिल किये गये उनके न्यूनतम वेतन, 8 घंटे की कार्य-दिवस की सीमा के अधिकार और इसी प्रकार के अन्य अधिकारों से वंचित किया जाए।
हम मज़दूर अपने किसान भाइयों और बहनों के साथ, हिन्दोस्तान की संपत्ति के निर्माता हैं। फिर भी हमारे साथ जानवरों से भी बदतर व्यवहार किया जा रहा है। पूंजीपतियों और उनकी सरकारों की नज़र में हम खच्चर के सिवाय और कुछ नहीं हैं। हम जो वेतन पाते हैं उसे पूंजीपति अपने कारोबार में खर्चे के रूप में देखते हैं जिसे कम से कम किया जाना है।
तालाबंदी के बावजूद, मज़दूर सड़कों पर विरोध करने के लिये उतरे हैं। वे अपनी असहनीय परिस्थितियों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं और अपने अधिकारों की मांग कर रहे हैं। डॉक्टर, नर्स और स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले अन्य मज़दूर, जो कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ संघर्ष में अग्रिम पंक्ति में हैं, वे सुरक्षा उपकरणों की कमी के ख़िलाफ़ विरोध करने के लिए मजबूर हैं। बैंकिंग, टेलीकॉम, रेलवे, कोयला खनन और अन्य क्षेत्रों में निजीकरण और सार्वजनिक संपत्ति की बर्बादी के ख़िलाफ़ श्रमिक दृढ़ता से लड़ रहे हैं।
दस केंद्रीय ट्रेड यूनियन महासंघों के संयुक्त आह्वान पर देशव्यापी विरोध में कल करोड़ों मज़दूरों ने भाग लिया। उन्होंने, मज़दूर वर्ग की लम्बे समय से की जाने वाली मांगों को, फिर से उठाया जैसे कि, ठेका मज़दूर व्यवस्था की समाप्ति, समान काम के लिए समान वेतन, न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये प्रतिमाह, स्वास्थ्य क्षेत्र के ‘स्वयंसेवकों’ को मज़दूर बतौर मान्यता, श्रम कानूनों में मज़दूर-विरोधी संशोधनों को वापस लेना, सभी कार्यरत लोगों को सार्वभौमिक पेंशन योजना की सुविधा, आवेदन के 45 दिनों के भीतर ट्रेड यूनियनों का पंजीकरण, निजीकरण कार्यक्रम को तत्काल रोकना और एक सर्वव्यापी सार्वजनिक वितरण प्रणाली की सुविधा लोगों को प्रदान करना।
वक्त का तकाज़ा है कि मानव होने के नाते और मज़दूर होने के नाते, सभी तबकों के मज़दूर साथ आकर अपनी ताक़त दिखायें और अपने अधिकारों की पुष्टि करें। हमारी ताक़त, हमारी एकता, हमारे संगठनों और हमारी चेतना में निहित है। अपनी ताक़त बढ़ाने के लिए, हमें अपने संगठन और चेतना के स्तर को बढ़ाने की आवश्यकता है। हमें उन सभी कारकों को काबू करने की ज़रूरत है जो हमें एकता नहीं बनाने देते और अपने वास्तविक दुश्मन को निशाना बनाने से भटकाते हैं।
अपने वोटों को अधिकतम करने के लिए तथा मौजूदा राज्य व्यवस्था के अन्दर अपना स्थान मज़बूत करने के लिये, पार्टियों के बीच की आपसी होड़ ही हमारे बीच फूट पड़ने के कारकों में प्रमुख है। सत्तारूढ़ दल से संबद्ध ट्रेड यूनियन महासंघ, संयुक्त कार्यों में अन्य सभी यूनियनों के साथ एकजुट नहीं होते हैं। यह हमारे सांझे संघर्ष को कमज़ोर करने का एक कारक है।
हम मज़दूर एक वर्ग हैं, जिसका सांझा हित होता है। हमें एकजुटता से काम करना है चाहे हमारी यूनियन किसी भी महासंघ से जुड़ी हो और वह महासंघ किसी भी पार्टी से जुड़ा हो। हमें औद्योगिक क्षेत्रों और सेवा-क्षेत्र के केंद्रों में, मज़दूरों की एकता समितियों का निर्माण करना होगा तथा उन्हें और भी मज़बूत करना होगा। विभिन्न यूनियनों और कम्युनिस्ट पार्टियों के कार्यकर्ताओं को मज़दूरों के अधिकारों की रक्षा के लिए, ऐसी एकता समितियों में एक साथ मिलकर काम करने की सख़्त ज़रूरत है।
जो लोग हमारी सभी समस्याओं के लिए सत्ताधारी पार्टी को दोषी ठहराते हैं, वे हमें, हमारे असली दुश्मन को पहचानने से रोक रहे हैं। अपने जीवन का अनुभव हमें यह दिखाता है कि पार्टियां सत्ता में आती हैं और चली जाती हैं, लेकिन पूंजीवादी शोषण बद से बदतर होता रहता है। 2004 में कांग्रेस ने भाजपा की जगह ली और 2014 में भाजपा ने कांग्रेस का स्थान लिया, लेकिन सरकार का कार्यक्रम नहीं बदला। एक के बाद एक सरकारें बदलीं लेकिन सभी सरकारों ने, भूमंडलीकरण, उदारीकरण और निजीकरण के कार्यक्रम को लगातार जारी रखा, जिसका उद्देश्य मेहनतकश लोगों का शोषण बढ़ाकर, सबसे शक्तिशाली पूंजीपतियों को समृद्ध करना है। यह क्या दिखाता है? यह दिखाता है कि इन राजनीतिक पार्टियों के पीछे पूंजीपति वर्ग खड़ा है, जिसका नेतृत्व में टाटा, अंबानी, बिड़ला और अन्य इजारेदार पूजीपति घराने करते हैं। इन्हीं के हाथों में राजनीतिक सत्ता है।
शासक वर्ग के राजनेताओं का दावा है कि राज्य – अर्थात, संसद और राज्य विधानसभाओं के मंत्री व सदस्य, नौकरशाही, न्यायपालिका, पुलिस और सशस्त्र बल – पूंजी और श्रम के बीच ज़िंदगी और मौत के संघर्ष में निष्पक्ष मध्यस्थ हैं। हालांकि, हमें अपनी ज़िंदगी का अनुभव दिखाता है कि मौजूदा राज्य, मज़दूरों, किसानों और अन्य मेहनतकश लोगों पर शोषण, दमन और अत्याचार करने के लिए पूंजीपति वर्ग का एक साधन है।
पूरी राजनीतिक व्यवस्था और इसकी चुनावी प्रक्रिया को पूंजीपति वर्ग के शासन को बरकरार रखने के लिए बनाया गया है। इस व्यवस्था में, करोड़ों मज़दूर अपना वोट डालने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि जहां पर वे काम करते हैं वहां पर वे मतदाता के रूप में पंजीकृत नहीं हैं। इसके अलावा, मतदान का अधिकार व्यर्थ है जब मतदान करने वाले उम्मीदवारों के चयन में भाग नहीं लेते हैं और चुने जाने के बाद, अपने प्रतिनिधि पर उनका कोई नियंत्रण नहीं होता है। पूंजीवादी वर्ग, चुनावों का उपयोग करके यह सुनिश्चित करता है कि राज्य के यंत्र पर उसकी देखी-परखी, एक नहीं तो दूसरी विश्वसनीय पार्टी क़ायम हो।
शासक वर्ग की पार्टियां और कॉरपोरेट नियंत्रित समाचार मीडिया, लगातार इस या उस धर्म के लोगों को हमारे मुख्य दुश्मन के रूप में दोषी ठहराते हुए, सांप्रदायिक प्रचार करते हैं। एक वक़्त पर उनका कहना था कि सिख हमारे मुख्य दुश्मन थे। अब वे कहते हैं कि मुसलमान हमारे मुख्य दुश्मन हैं। वे हमारी सभी समस्याओं के लिए पाकिस्तान या चीन को ज़िम्मेदार ठहराते रहते हैं। वे इस सच्चाई को छुपाना चाहते हैं कि हमारा मुख्य शत्रु, सत्ता में बैठा हिन्दोस्तानी पूंजीवादी वर्ग है, जिसका नेतृत्व बड़े इजारेदार घराने करते हैं और उनके साम्राज्यवादी सहयोगी, जिनका नेतृत्व अमरीका के हाथों में है। वे इस तथ्य को छिपाना चाहते हैं कि पूंजीवादी व्यवस्था और राज्य जिसे इस व्यवस्था की हिफ़ाज़त करने के लिए बनाया गया है, हमारी समस्याओं का मुख्य स्रोत है।
हम मज़दूरों को धर्म, जाति, यूनियन और पार्टी की संबद्धता के सभी मतभेदों से ऊपर उठना होगा और अपने सांझे दुश्मन – हिन्दोस्तानी और अंतर्राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग के ख़िलाफ़, अपनी लड़ाकू एकता को मज़बूत करना होगा।
हमें अपने संघर्ष के राजनीतिक उद्देश्य को, पूंजीपति वर्ग के राज की जगह पर मज़दूरों व किसानों के राज को स्थापित करने से कम नहीं रखना चाहिए। हमारी न्यायोचित मांगों की पूर्ति सुनिश्चित करने के लिए और हमारे सभी अधिकारों की हिफ़ाज़त सुनिश्चित करने के लिए, हमें एक नई राजनीतिक व्यवस्था की ज़रूरत है। हमें, ऐसी व्यवस्था की ज़रूरत है जिसकी बनावट ही यह सुनिश्चित करती हो कि देश की आबादी के बहुसंख्यक हिस्से बतौर, मज़दूरों और किसानों के हाथों में सत्ता रहे।
हम जो हिन्दोस्तान की सम्पत्ति पैदा करते हैं, हमें उस सम्पत्ति का मालिक बनना होगा। हमें, पूंजीपति वर्ग को हटाकर फैसले लेने का अधिकार अपने हाथों में लेना होगा। तभी हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि हमारे द्वारा बनाई गई संपत्ति का उपयोग बहुसंख्यक मेहनतकशों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए किया जायेगा न कि शोषण करने वाले अल्पसंख्यक पूंजीपतियों की लालच को पूरा करने के लिए।
अपनी श्रम शक्ति को बेचकर जीवन यापन करने वाले हम सभी लोगों का एक ही वर्ग है। हमें पूंजीवादी राज को समाप्त करने और मज़दूरों और किसानों के राज को स्थापित करने के उद्देश्य और कार्यक्रम के आधार पर एकजुट होना होगा। हमें एक ऐसे राज्य और संविधान के लिए लड़ना होगा जो इस बात की गारंटी देता हो कि मेहनत करने वालों को मेहनत के फलों का आनंद उठाने का अधिकार हो। हमें एक एकीकृत अगुवा पार्टी बनाने का प्रयास करना होगा जो किसानों और सभी दबे-कुचले लोगों के साथ मिल कर, मज़दूर वर्ग के शासक वर्ग बनने के अपने संघर्ष को नेतृत्व प्रदान करे।
एक मज़दूर वर्ग, एक कार्यक्रम, एक पार्टी