5 अगस्त, 2011 को यूनाईटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स की अगुवाई में नौ यूनियनों ने प्रमुख मुद्दों व मांगों को लेकर सर्व-हिन्द हड़ताल की।
इस हड़ताल में सार्वजनिक क्षेत्र बैंक, विदेशी बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और सहकारी बैंक के 10 लाख श्रमिक हड़ताल में उतरे। इस हड़ताल में पूरे देश के बैंक कर्मचारियों की एकता देखने को मिली है।
5 अगस्त, 2011 को यूनाईटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स की अगुवाई में नौ यूनियनों ने प्रमुख मुद्दों व मांगों को लेकर सर्व-हिन्द हड़ताल की।
इस हड़ताल में सार्वजनिक क्षेत्र बैंक, विदेशी बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और सहकारी बैंक के 10 लाख श्रमिक हड़ताल में उतरे। इस हड़ताल में पूरे देश के बैंक कर्मचारियों की एकता देखने को मिली है।
पूरे देश में हड़ताल के चलते बैंकों का कामकाज पूरी तरह से ठप्प रहा। देश के मुख्य शहरों – भुवनेश्वर, दिल्ली, चंडीगढ़, मुंबई, पटना, अहमदाबाद आदि अलग-अलग राजधानियों में स्थित अलग-अलग बैंकों के मुख्यालयों पर बैंक कर्मियों ने धरना, विरोध प्रदर्शन और रैलियां आयोजित की। इस अवसर पर आयोजित सभाओं में सरकार की पूंजीवादी नीतियों की कड़ी निंदा की गई। सरकार की तथाकथित बैंक सुधार और खंडेलवाल कमेटी की सिफारिशों के खिलाफ़ नारे बुलंद किये गए।
प्रदर्शन के दौरान, बैंक यूनियनों के नेताओं ने बैंक कर्मचारियों को संबोधित किया। उन्होंने अपने संबोधन में यूनियनों द्वारा की जा रही मांगों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि बैंकों में तथाकथित सुधार की प्रक्रिया मजदूर-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी है। खंडेलवाल कमेटी की सिफारिशों को लागू करने का मतलब बैंक में काम करने वाले मजदूरों की एकता को तोड़ना, उन्हें कमजोर करना व ग्राहकों को और लूटना है। पूंजीपतियों के मकसद को पूरा करने के लिए सरकार ऐसा कर रही है।
मजदूर एकता लहर सफल बैंक हड़ताल के लिए बैंक कर्मियों, उनके यूनियनों तथा फेडरेशनों को मुबारकबाद देती है।
बैंक कर्मियों की प्रमुख मांगें इस प्रकार हैं:
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण नहीं किया जाये/सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में राजकीय अंशपूंजी को कम नहीं किया जाये।
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पूंजीकरण के लिए विश्व बैंक से ऋण न लिया जाए।
- बैंकों के विलयन को आगे नहीं बढ़ाया जाए।
- बैंकिंग क्षेत्र में विदेशी पूंजी के निर्बाध प्रवाह की अनुमति नहीं दी जाए। बैंकिंग रेग्यूलेशन एक्ट के सेक्शन 12 (2) को समाप्त नहीं किया जाए। विदेशी निवेशकों के वोटिंग अधिकार की सीमा को नहीं हटाया जाए।
- औद्योगिक घरानों को उनके बैंक आरंभ करने के लिए लाईसेंस नहीं दिए जाएं।
- स्थायी प्रकार के बैंकिंग कार्यों एवं सामान्य बैंकिंग सेवाओं का आऊटसोर्सिंग नहीं करें; निजी व्यापारिक प्रतिनिधि की योजना पर आगे नहीं बढ़ें; आऊटसोर्सिंग पर द्विपक्षीय समझौते के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करें।
- बैंकों में ग्राहक सेवा बनाए रखने व ग्राहक सेवा में सुधार के लिए उचित स्टाफ उपलब्ध कराया जाए; कार्य के समय का उल्लंघन रोका जाए; सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में स्टाफ की भर्ती के लिए बीएसआरबी को पुनर्जीवित किया जाए।
खंडेलवाल समिति की अनुशंसाओं को रद्द किया जाए।