फैसले लेने की ताकत लोगों द्वारा पुनः प्राप्त करने का वक्त

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का बयान, 1 अगस्त, 2011

 हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी का मानना है कि संसदीय लोकतंत्र और पार्टी आधिपत्य वाली राजनीतिक प्रक्रिया की वर्तमान व्यवस्था आज वक्त से कदम नहीं मिलाती। यह व्यवस्था और इसका आधारभूत सिद्धांत, न केवल यूरोप से आयातित है, बल्कि यह कई सैकड़ों साल पुराना भी है। इसकी बनावट ही ऐसी है कि इसमें फैसले लेने की ताकत मुट्ठीभर विशेषाधिकार प्राप्त लोगों तक सीमित है।लोगों की सहमति से तैयार किये गये लोकपाल विधेयक को संसद में भेजने के आंदोलन और सत्तारूढ़ व विपक्षी पार्टियों द्वारा इस आंदोलन की विरोधता से एक अहम प्रश्न उठता है।

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का बयान, 1 अगस्त, 2011

 हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी का मानना है कि संसदीय लोकतंत्र और पार्टी आधिपत्य वाली राजनीतिक प्रक्रिया की वर्तमान व्यवस्था आज वक्त से कदम नहीं मिलाती। यह व्यवस्था और इसका आधारभूत सिद्धांत, न केवल यूरोप से आयातित है, बल्कि यह कई सैकड़ों साल पुराना भी है। इसकी बनावट ही ऐसी है कि इसमें फैसले लेने की ताकत मुट्ठीभर विशेषाधिकार प्राप्त लोगों तक सीमित है।लोगों की सहमति से तैयार किये गये लोकपाल विधेयक को संसद में भेजने के आंदोलन और सत्तारूढ़ व विपक्षी पार्टियों द्वारा इस आंदोलन की विरोधता से एक अहम प्रश्न उठता है।

कानून बनाने की ताकत क्या सांसदों तक ही सीमित होनी चाहिये, या यह लोगों के हाथों में होनी चाहिये?

प्रधानमंत्री को भ्रष्टाचार-विरोधी प्रस्तावित लोकपाल के दायरे में होना चाहिये या नहीं, इस मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी, भाजपा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के एक दूसरे से भिन्न मत हैं। परन्तु, ये सभी पार्टियां फैसले लेने के अधिकार को सख्ती से, संसद के हाथों में ही सीमित रखना चाहती हैं; न कि संसद के बाहर किसी के हाथों में।

टीवी के चर्चा कार्यक्रमों में हावी रहने वाली इन पार्टियों के अनुसार, लोग अपना मत प्रकट कर सकते हैं, परन्तु फैसले लेने में उनका कोई योगदान नहीं है। एक बार उन्होंने अपना वोट डाल दिया है तब उनकी सारी ताकत खत्म हो जाती है। फैसले लेने की ताकत उनके द्वारा चुनकर आये व्यक्तियों के हाथों में आ जाती है। यही कांग्रेस पार्टी, भाजपा और माकपा की सांझी दृष्टि है – इन तीनों पार्टियों की, जो एक दूसरे के साथ महायुद्ध में लगे होने का दावा करते हैं।

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की सोच है कि अब वक्त आ गया है जब वैधानिक ताकत पर सांसदों के एकाधिकार को खत्म किया जाये। फैसले लेने की सर्वोच्च ताकत को आम तौर पर लोगों के हाथों में सौंपने का वक्त आ गया है ताकि (1) निरंकुश ताकत वहां विराजमान हो, जहां मेहनतकश लोगों की बहुसंख्या चाहे; (2) समाज में कोई भी कानून के दायरे के बाहर न रह सके और कानून सभी पर बराबरी से लागू हो; और (3) बहुसंख्या की इच्छा वास्तविकता में प्रबल हो।

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी का मानना है कि संसदीय लोकतंत्र और पार्टी आधिपत्य वाली राजनीतिक प्रक्रिया की वर्तमान व्यवस्था आज वक्त से कदम नहीं मिलाती। यह व्यवस्था और इसका आधारभूत सिद्धांत, न केवल यूरोप से आयातित है, बल्कि यह कई सैकड़ों साल पुराना भी है। इसकी बनावट ही ऐसी है कि इसमें फैसले लेने की ताकत मुट्ठीभर विशेषाधिकार प्राप्त लोगों तक सीमित है।

लोगों द्वारा फैसले लेने की ताकत प्राप्त होने का मतलब क्या होता है? इसका मतलब होता है कि वोट देने के बाद लोगों की भूमिका खत्म नहीं होगी और न ही खत्म होने दी जा सकती है। चुनाव जीतने वालों को, लोग अपनी पूरी ताकत नहीं सौंप सकते हैं।

सबसे पहली बात है कि लोगों की स्वीकृति के बिना चयनित उम्मीदवारों में से एक को चुनने के लिये लोगों को बाध्य नहीं किया जा सकता है। अपने-अपने मतदान क्षेत्र में संगठित लोगों को (1) उम्मीदवारों का चयन करने, उन्हें स्वीकृति देने या अस्वीकृत करने का अधिकार, (2) उनके द्वारा चुने हुये प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार, और (3) नये कानून बनाने या पुराने कानूनों में संशोधन करने का अधिकार होना चाहिये और ये व्यवहार में होना चाहिये।

जो भी पार्टी, 1950 के संविधान पर भरोसा रख कर, संसद के हाथ संवैधानिक ताकत का बचाव करती है, वह असलियत में, अति अमीर शोषक अल्पसंख्यकों द्वारा अपने समाज पर उनकी इच्छा थोपने के “अधिकार” की रक्षा करती है। इजारेदार पूंजीपति अपने धन के बल पर और पार्टियों और सांसदों के जरिये अपनी इच्छा समाज पर थोपते हैं।

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी, बिना किसी शर्त, लोगों के सत्ता में आने के आंदोलन का समर्थन करती है – यानि कि, लोगों द्वारा फैसले लेने की। तभी बहुसंख्या का राज, सिर्फ दिखावा न रह कर, असलियत में आ सकता है।

असली महायुद्ध यथास्थिति बरकरार रखने वाली पार्टियों के बीच नहीं है। असली महायुद्ध तो उनके बीच है जो यथास्थिति को बचा के रखना चाहते हैं और जो लोगों के हाथ में सत्ता देने के लिये गहरी बदल लाना चाहते हैं।

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की सोच है कि अब वक्त आ गया है जब वैधानिक ताकत पर सांसदों के एकाधिकार को खत्म किया जाये। फैसले लेने की सर्वोच्च ताकत को आम तौर पर लोगों के हाथों में सौंपने का वक्त आ गया है ताकि (1) निरंकुश ताकत वहां विराजमान हो, जहां मेहनतकश लोगों की बहुसंख्या चाहे; (2) समाज में कोई भी कानून के दायरे के बाहर न रह सके और कानून सभी पर बराबरी से लागू हो; और (3) बहुसंख्या की इच्छा वास्तविकता में प्रबल हो।

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