निजीकरण की कोशिश के पीछे कौन है और क्यों?

एयर इंडिया के मजदूर अपनी कंपनी को दिवालिया बनाये जाने व उसका निजीकरण करने के प्रयासों के खिलाफ़ जोरदार संघर्ष कर रहे हैं।

एयर इंडिया के विभिन्न मजदूर – विमान चालक, कैबिन क्रू, जमीनी कर्मचारी और इंजिनियरिंग कर्मचारी – सभी ने लगातार यह पर्दाफाश किया है कि एयर इंडिया के वर्तमान सी.एम.डी. अरविन्द जाधव और संप्रग सरकार 1और 2के तहत नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने एयर इंडिया को सुनियोजित तरीके से नुकसान पहुंचाया है ताकि इस मुनाफेदार कंपनी को एक नुकसानजनक कंपनी में बदल दिया जाये। उन्होंने यह पर्दाफाश किया है कि कंपनी को क्रमशः दिवालिया बनाकर उसके एक-एक हिस्से का निजीकण किया जा रहा है ताकि अन्ततः उसका पूरा निजीकरण किया जा सके।

इन पर्दाफाशों की वजह से अब सरकार एयर इंडिया को पुनर्जीवित करने की बात कर रही है। एक तरफ, पूंजीपतियों के संगठन फौरन उसका निजीकरण करने की मांग कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि सरकार को एयर इंडिया में और पैसा नहीं डालना चाहिए क्योंकि यह पैसा बरबाद हो जायेगा।

केन्द्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री वायलार रवि ने 6 जुलाई, 2011को इंडियन कमर्शियल पायलट्स एसोसियशन (आई.सी.पी.ए.) तथा कैबिन क्रू इंजीनियर, मेन्टेनेंस, जमीनी काम तथा व्यवसायिक विभाग, आदि के मजदूरों के साथ एक बैठक की। इस बैठक पर आई.सी.पी.ए. द्वारा जारी किये गये नोटिस के अनुसार, मंत्री ने नेताओं को यह आश्वासन दिया कि सरकार और प्रधान मंत्री एयर इंडिया को पुनर्जीवित करने की बात को बहुत गंभीरतापूर्वक सोच रहे हैं। उन्होंने कहा कि एयर इंडिया पर गठित मंत्री समूह इसी हफ्ते मिलकर यह फैसला सुनाने वाला है कि एयर इंडिया को 1200करोड़ रुपये का अनुदान दिया जाये और उस बाकी 1200करोड़ रुपये का भुगतान भी किया जाये जो सरकार को अपने काम-काज के लिये इस्तेमाल की गई उड़ानों के लिये एयर इंडिया को देना था। मंत्री ने बार-बार नेताओं को आश्वासन दिया कि मेनटेनेंस और रिपेयर ओवर हॉल विभाग का निजीकरण नहीं किया जायेगा, जैसा कि इंजीनियरों को डर है।

पहला सवाल यह है कि क्या सरकार एयर इंडिया के पुनर्जीवन को सुनिश्चित करने में गंभीर है? अगर ऐसा है तो सरकार को पहले इस सवाल का जवाब देना पड़ेगा कि एयर इंडिया का सामूहिक नुकसान बीते तीन वर्षों में 675करोड़ से 60,000करोड़ रुपये तक क्यों बढ़ गया है। सरकार को यह जवाब देना पड़ेगा कि वायु उड़ान बाजार में एयर इंडिया का हिस्सा जो तीन वर्ष पहले सबसे बड़ा था, वह आज क्यों घट गया है और एयर इंडिया की उड़ान करने वाले लोगों की संख्या क्यों घट गयी है, जबकि वायु परिवहन करने वाले लोगों की कुल संख्या बहुत बढ़ गयी है।

इसका एक मुख्य कारण बोइंग 777और 787 ड्रीम लाइनर की खरीदी है, जो कंपनी की जरूरत से कहीं ज्यादा है। जाधव द्वारा अधिकृत कंपनी द्वारा बहुत ज्यादा नुकसानजनक खर्च किया गया है, जैसे कि तीन बार साइन बदलकर विमानों को फिर से पेंट करवाना। मुनाफेदार रूट जानबूझकर निजी देशी और विदेशी स्पर्धाकारी कंपनियों को सौंपे गये हैं। निजी विमान कंपनियों को अच्छे-अच्छे उड़ान समय दिये गये हैं। मुनाफेदार जमीनी काम-काज के विभाग को सिंगापोर की कंपनी एस.ए.टी.एस. को सौंपा गया है। चालकों, कैबिन क्रू, और दूसरे मजदूरों को तथा विमानों को खाली बैठाकर रखा जाता है। इसके अलावा बीते कुछ सालों में अरविन्द जाधव और नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अफसरों ने ऐलान किया है कि निजीकरण के अलावा कोई और चारा नहीं है, बस सवाल यह है कि कब और कैसे इसे किया जाये।

अगर सरकार एयर इंडिया को पुनर्जीवित करने के बारे में गंभीर है तो वह फौरन वह रास्ता अपनायेगी जो एयर इंडिया के मजदूर मांग रहे हैं। देशी-विदेशी निजी विमान कंपनियों के साथ विशेष बर्ताव करना रोकना होगा और एयर इंडिया के उड़ान घण्टों व गंतव्य स्थानों की संख्या बढ़ानी होगी, ताकि कंपनी के अनुपयुक्त प्रशिक्षित मजदूरों और विमानों का पूरा उपयोग हो सके। इसके अलावा वर्तमान सी.एम.डी. अरविन्द जाधव समेत वर्तमान स्थिति के लिये जिम्मेदार सभी लोगों को सज़ा मिलनी चाहिये। मजदूरों का यह मानना है कि अरविन्द जाधव को एयर इंडिया को दिवालिया बनाकर उसका निजीकरण करने के उद्देश्य से नियुक्त किया गया था। (अरविन्द जाधव बोइंग का आदमी, इस नाम से जाना जाता है जैसा कि राडिया टेप्स में बताया गया था)।

ऐसा नहीं लगता है कि सरकार अपना रास्ता बदलने वाली है। कभी-कभी एयर इंडिया में थोड़ा-थोड़ा धन डाल देने का यह मतलब है कि सरकार उसका पूर्ण निजीकरण करने के सही मौके का इंतजार कर रही है।

निजीकरण की कोशिश के पीछे कौन है और क्यों?

हिन्दोस्तान में विमान उद्योग बीते 15वर्षों में बहुत तेजी से आगे बढ़ा है। निजी कंपनियों की तुलना में एयर इंडिया के विमानों की सबसे अधिक संख्या है तथा उसकी बहुत सारी अन्य संपत्ति भी है, जैसे हिन्दोस्तान और दुनिया के कई मुख्य शहरों में कीमती जमीन-जायदाद, इत्यादि। इन अन्य संपत्तियों से ही एयर इंडिया के अब तक के सारे नुकसान पूरे किये जा सकते हैं। एयर इंडिया ब्रांड का नाम दुनिया भर में पहचाना जाता है।

इन हालतों में हिन्दोस्तान और विदेश में कई खिलाडि़यों की नजर एयर इंडिया को हथियाने पर है। एयर इंडिया और उसकी संपत्तियों को हथियाने के लिये हिन्दोस्तानी पूंजीपतियों के बीच घमासान लड़ाई चल रही है। रतन टाटा को इसमें रुचि है। किंगफिशर, जेट इत्यादि के मालिक भी इसमें रुचि रखते हैं। जाना जाता है कि सिंगापोर एयर लाइंस और लुफ्तहांसा जैसे अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी भी इसमें शामिल हैं। लुफ्तहांसा के सी.ई.ओ. ने एयर इंडिया के निजीकरण की मांग की है। फिक्की के महासचिव, राजीव कुमार ने 9 जुलाई, 2011 के हिन्दू समाचार पत्र में एयर इंडिया के निजीकरण की मांग की है। वह खास स्वार्थों के पक्ष में कर रहा है। इस तरह, विभिन्न हिन्दोस्तानी और विदेशी खिलाड़ी उस समय का इंतजार कर रहे हैं जब सरकार जानबूझकर एयर इंडिया का अवमूल्यन करती है, ताकि तब वे सस्ते दाम पर उसे हथिया सकें।

निजीकरण के पक्ष में फिक्की महासचिव के तर्क

एयर इंडिया के निजीकरण के लिये फिक्की के महासचिव द्वारा पेश किये गये तर्कों को समझना तथा उनका मुकाबला करना होगा।

फिक्की के महासचिव ने कहा है कि “सरकार द्वारा उसमें बार-बार पूंजी डालने के बावजूद उसका मूल्य नकारात्मक था”। (एयर इंडिया प्रबंधन के अनुसार, एयर इंडिया के नुकसान बीते 3 वर्षां में 475 करोड़ रुपये से 60,000 करोड़ रुपये तक बढ़ गये हैं)। फिक्की के महासचिव गलत सूचना फैला रहे हैं। दूसरी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की तरह, एयर इंडिया बीते दशकों में सरकारी तिजौरी में अपना योगदान देता रहा है। यह सच नहीं है कि सरकार एक कभी न भरने वाले गड्डे में पैसे डालती जा रही है। बीते 3 सालों में बोइंग विमानों को खरीदने के लिये बैंक से ऊंचे ब्याज दर पर उधार लिये गये थे। फिक्की महासचिव ने यह समझाने की कोशिश नहीं की कि एयर इंडिया के निजीकरण से उसे कैसे “नकारात्मक मूल्य” वाली कंपनी से मुनाफेदार कंपनी में बदल दिया जायेगा। सच्चाई तो यह है कि एयर इंडिया का कुल मूल्य नकारात्मक से बहुत दूर है। जैसा कि पहले बताया गया है, एयर इंडिया की जमीन-जायदाद को बाज़ार में बेचने से ही उसे कई सालों तक वित्तीय संकट से बाहर निकाला जा सकता है। अगर उसके विमानों की संख्या और कुशल श्रम शक्ति का पूरा उपयोग किया जाए तो बाजार में उसका हिस्सा बहुत बढ़ सकता है। इस पर निजी देशी-विदेशी पूंजीपतियों की नज़र है। वे चाहते हैं कि सरकार जानबूझकर एयर इंडिया का अवमूल्यन करे ताकि उसे फिर सस्ते में खरीदा जा सकता है और मोटे मुनाफे बनाया जा सकता है।

फिक्की अध्यक्ष का यह कहना है कि एयर इंडिया “कुछ रणनैतिक जरूरतों” को पूरा नहीं करता है। उनका कहना है कि एयर इंडिया “गरीबों की जन-सेवा नहीं करता है”।

निजीकरण का पक्षपात करने वाले इन्हीं पूंजीपतियों ने कई बार और हाल के संकट के दौरान भी, सरकार से बेल-आउट रूपी राहत मांगी है और उन्हें सरकार ने राहत दी भी है। क्या उन्हें बेल-आउट रूपी राहत इसलिये दी गई कि वे किसी “रणनीतिक जरूरत” को पूरा कर रहे थे? क्या वे “गरीबों की  जनसेवा” कर रहे थे? नहीं। सरकार ने बस ऐलान कर दिया कि जो पूंजीपतियों के हित में है, वही पूरे देश के हित में है।

जब स्वतंत्रता के ठीक बाद, एयर इंडिया का राष्ट्रीकरण किया गया था, तो उस समय समाज का बहुत छोटा तबका – बड़े-बड़े पूंजीपति, मंत्री, अफसर, आदि ही – उसकी सेवाओं का इस्तेमाल करते थे। हाल के दशकों में ही देश के अंदर तथा हिन्दोस्तान और दूसरे देशों के बीच विमान यातायात बहुत बढ़ गई है। अब प्रति वर्ष 10 और 20 करोड़ हिन्दोस्तानी विमान सेवाओं का इस्तेमाल करते हैं और हमारा देश इतना बड़ा है कि पूरे देश में सस्ती विमान उड़ान सेवाओं को बहुत बढ़ाने की जरूरत है। विमान सेवाओं का इस्तेमाल करने वाले बहुत से लोग मजदूर हैं। इसके अलावा, देश के बहुत से ऐसे इलाके हैं, जैसे कि पूर्वोत्तर राज्य, उड़ीसा, आदि, जिन्हें सस्ते दाम पर विमान सेवाओं की आवश्कता है। इस सब को तभी हासिल किया जा सकता है अगर समस्या को अधिकतम मुनाफों के तंग नज़रिये से न देखा जाये, जैसा कि फिक्की अध्यक्ष कर रहा है, बल्कि समाज के आम हितों के नज़रिये से देखा जाये।

फिक्की अध्यक्ष का यह प्रस्ताव है कि जिन इलाकों में उड़ान करना व्यवसायिक तौर पर मुनाफेदार नहीं है, वहां उड़ान सेवा चलाने के लिये सरकार एक अलग कोष बनाये, जिससे निजी विमान कंपनियों को पैसा दिया जाये। वे चाहते हैं कि सरकार एक और कोष बनाये, जिससे निजी विमान कंपनियों को विदेश में फंसे लोगों के बचाव-राहत का काम करने के लिये पैसे दिया जाये। उनके प्रस्ताव का यह मतलब है कि “रणनीतिक जरूरतों” और “जनसेवाओं”, यानि गैर मुनाफेदार कार्यवाहियों का खर्च जनता पर लाद दिया जाये, जबकि मुनाफेदार विमानों को निजी कंपनियों को सौंपा जाए!

जब तक एयर इंडिया मौजूद है, तब तक दूसरी निजी विमान कंपनियां अपने मजदूरों की संख्या में कटौती करके “विश्व में स्पर्धाकारी” नहीं बन सकती हैं। फिक्की अध्यक्ष ने लगभग ऐसा ही कहा। एयर इंडिया ने विमान उड़ान उद्योग में एक मानदंड स्थापित किया है और इस मानदंड को तोड़ कर ही दूसरी निजी विमान कंपनियां अपने भाड़े बढ़ा सकती हैं, मजदूरों का शोषण बढ़ा सकती हैं, अपने मुनाफों को बढ़ा सकती हैं और अपनी इजारेदारी स्थापित कर सकती हैं।

एयर इंडिया को दीवाला करके उसका निजीकरण करने के इन कदमों का एयर इंडिया के मजदूर बार-बार विरोध करते आ रहे हैं। वे देश के लोगों के सामने एयर इंडिया की गतिविधियों की सच्चाई का खुलासा करने के उद्देश्य से संघर्ष कर रहे हैं। इसके लिये उन्हें वहशी उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है, जिससे सरकार के असली इरादे स्पष्ट होते हैं।

एयर इंडिया को दिवाला बनाकर उसका निजीकरण करने की सरकार की कोशिशों के खिलाफ़ एयर इंडिया के मजदूरों के संघर्ष का पूरे देश के मजदूर वर्ग को समर्थन करना चाहिये।

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